पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२४

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जनमेजय ने यज्ञ करना चाहा, तब काश्यप पुरोहितो को छोड़ दिया। इसपर असितागिरस काश्यप ने बडा आन्दोलन किया कि हमही पुरोहित बनाए जायं । सम्भवत इसी कारण तुर कावषेय ऋषि ने जनमेजय का ऐन्द्रमहाभिषेक कराया था। (देखिये ऐतरेयब्राह्मण ९-२१)। इन प्रमाणो के देखने से यह विदित होता है कि अर्थलोलुप काश्यप ने इस यज्ञ मे विघ्न डाला, और खाण्डवदाह से निर्वासित नागो का विद्रोह आरम्भ हुआ, जिसमे काश्यप का भी छिपा हुआ हाथ होना असम्भव नही। कुल बातो को मिलाकर देखते से यही विदित होता है कि जनमेजय के विरुद्ध एक भारी षड्यन्त्र चल रहा था। आदि पर्व के पौष्य पर्व ( अक ३ ) से विदित होता है कि जब जनमेजय पर कृत्या और वित्ति आई, तब उन्होने नाग-कन्या से उत्पन्न सोमश्रवा को बडी प्रार्थना से अपना पुरोहित बनाया और आसन्न नाग-विद्रोह तथा भीतरी षड्यन्त्रो से बचने के लिए उन्हे अत्यन्त प्रयत्नशील होना पड़ा। नागो ने ब्राह्मणो से सम्बन्ध स्थापित कर लिया था, और इसी कारण वे बलवान होकर अपमे गये हुए राज्य का पुनरुद्धार करना चाहते थे। नाग-जाति भारतवर्ष की एक प्राचीन जाति थी जो पहले सरस्वती के तट पर रहती थी । (आदि पर्व, १४०) भरत जाति के क्षत्रियो ने उन्हे वहाँ से खाण्डव वन की ओर हटाया । खाण्डव मे भी वे अजुन के कारण न रहने पाये । खाण्डव-दाह के समय नाग जाति के नेता तक्षक निकल भागे। महाभारत युद्ध के बाद उन्मत्त परीक्षित ने शृगी-ऋषि, ब्राह्मण का अपमान किया, और तक्षक ने काश्यप आदि से मिल कर आर्य-सम्राट् परीक्षित की हत्या की। उन्ही के पुत्र जनमेजय के राज्य-प्रारम्भ-काल मे आर्य जाति के भक्त उत्तक ने वाह्य और आभ्यतर कुचक्रो का दमन करने के लिए जनमेजय को उत्तेजित किया। आर्य युवको के अत्यन्त उत्साह से अनेक आभ्यन्तर विरोध रहते हुए भी नवीन साम्राज्य की रक्षा की गयी। श्रीकृष्ण द्वारा सम्पादित नवीन महाभारत-साम्राज्य की पुनर्योजना जनमेजय के प्रचण्ड विक्रम और दृढ शासन से हुई थी। मदैव से लड़ने वाली इन दो जातियो मे मेल-मिलाप हुआ, जिससे हजारो वर्षों तक आर्य साम्राज्य मे भारतीय प्रजा फूलती-फलती रही। बस, इन्ही घटनाओ के आधार पर इस नाटक की रचना इस नाटक के पात्रो मे कल्पित केवल चार-पांच है। पुरुषो मे माणवक और त्रिविक्रम तथा स्त्रियो मे दामिनी और शीला आदि। जहां तक हो सका है, इसके आख्यान भाग मे भारत काल की ऐतिहासिकता की रक्षा की गई है, और इन कल्पित चार पात्रो से मूल घटनाओ का सम्बन्ध-सूत्र जोडने का ही काम लिया गया है। इनमे से वास्तव में दो-एक का केवल नाम ही कल्पित है, जैसे वेद की २४ : प्रसाद वाङ्मय