पाचाल, ऋक् संहिना मे मगध का भी. कीकट नाम से उल्लेख है-"कि ते कृण्वति कोकटेष गावो" (३-५३-१४)। दास कीकट को ऋक्कालीन प्रदेश नही मानना चाहते। वे कहते हैं, पांचाल कोशल आदि भी उस काल के प्रदेश नही थे (पृ० १६१) । कितु विशेष नाम न होने से क्या हुआ जब ऋग्वेद के प्राचीन मण्डल (क्योकि दसवे मण्डल को लोग पीछे का मानते हैं)-३१५८०६ मे 'जहाव्य' गंगा के प्रदेशो का उल्लेख है, सो भी पुराण- मोकः-प्राचीन वासभूमि कहकर ! अतः गंगा के समीप का वह देश ऋक्-काल का अवश्य है जिसकी पूर्व सीमा मे कीकट (दक्षिणी बिहार) देश था। उधर 'आवदिन्द्र यमुना तृत्सवश्व' (७-१८-१९) यमुना तीरवर्ती देश का भी उल्लेख है; फिर कोशल, मगध का नाम न होने से कुछ बिगडता नही। हो सकता है, अत्यन्त पूर्व स्थित होने के कारण इनकी बस्ती घनी न रही हो और इन नामों से अलग-अलग वितन्त्र राष्ट्र न स्थापित हुए हो। ऐतरेय मे उत्तर-मद्र का भी उल्लेख है। उत्तर-मद्र को इसी लेख मे पहले मध्य- कालीन मीडिया से अभिन्न माना गया है। उत्तर-मद्र पश्चिम मे और मगध पूर्व मे आर्यों के प्रभाव-क्षेत्र स सलग्न थे । पश्चिम मे तो 'समुद्र रसया महाहु.' (१०-१२१- ४) मे वर्णित रमा अबिस्तान, रूम या मेमोपोटामियां की, समुद्र मे मिलनेवाली टिगरिस नदी का भी नाम आया है, क्योकि अवेस्ता के अनुसार यह राधा प्रदेश भी पवित्र माना गया है। यद्यपि सरमा के उपारयान-सम्बन्धी ऋग्वैदिक सूक्तो मे रसा के उस पार असुरों की आवास-भूमि का उल्लेख है; परन्तु उत्तर-मद्र की स्पष्ट सूचना नहीं मिलती। यह प्रदेश ऋक् संहिता-काल मे उतना नही बसा था, हो सकता है कि इमी कारण ऋक्काल मे इसकी स्वतन्त्र आख्या न बनी हो । ऋक्-काल मे सरस्वती की घाटी मे भी रहनेवाले आर्यों से संघर्ष ही चल रहा था। इसलिये सरस्वती को 'वृत्रनी' कहा है । ऋक्-मंत्र १०-२७-१७ मे सामश्रमी ने आक्षस नदी का भी उल्लेख माना है । इसलिये उक्त प्रमाणो से गगा से लेकर वर्तमान हेलमद की घाटी और वाह्लीक से लेकर दक्षिण के ऋक्-कालिक राजपूताना के समुद्र तक हम आर्यों की एक घनी बस्ती मानते है, जिसले बीच मे मेरु स्थित है। मगध, अग तथा मीडिया और मेसोपोटामिया के प्रदेश भी आर्य-क्षेत्र कहे जा सकते है, किंतु इन प्रदेशों में आर्यों को अनार्यों तथा अपनी ही जाति के भिन्न मतावलंबी अधार्मिको से बराबर युद्ध और संघर्ष करना पड़ता था। यहाँ मुझे थोड़ा सा उस बढ़ते हुए विचार पर भी पनी सम्मति प्रकट कर देनी है; जिसे आजकल बहुत प्रधानता दी जा रही है। वह है आर्यो के पहले भारत- वर्ष के एक अत्यन्त प्राचीन द्रविड़ सभ्यता मानने का सिद्धात - सो भी ऋग्वेद-काल प्राचीन आर्यावर्त : १२३
पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२२३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।