देवताओं के मंदिरों में रहनेवाली देवदासियां ही धार्मिक प्रेम का उद्गम हैं और वहीं से धर्म और प्रेम का मिश्रण, उपासना मे कामोपभोग इत्यादि अनाचार का आरंभ हुआ तथा यह प्रेम ईसाई-धर्म के द्वारा भारतवर्ष के वैष्णव-धर्म को मिला। किंतु उन्हें यह नही मालूम कि काम का धर्म में अथवा सृष्टि के उद्गम में बहुत बड़ा प्रभाव ऋग्वेद के समय मे ही माना जा चुका है-'कामस्तदने समवर्तताधि मनसो रेतः प्रथमं पदासीत्' । यह काम प्रेम का प्राचीन वैदिक नाम है और प्रेम से वह शब्द अधिक व्यापक भी है। जब से हमने प्रेम को Love या इश्क का पर्याय मान लिया, तभी से 'काम' शब्द की महत्ता कम हो गयी। मंभवतः विवेकवादियों की आदर्श-भावना के कारण, इस शब्द में केवल स्त्री-पुरुष-सबंध के अर्थ का ही भान होने लगा। किंतु काम मे जिस व्यापक भावना का समावेश है, वह इन सब भावों को आवृत कर लेती है। इसी वैदिक काम की आगम शास्त्रों मे, कामकला के रूप मे उपासना भारत में विकसित हुई थी। यह उपासना सोंदर्य, आनद और उन्मद भाव की साधना-प्रणाली थी। पीछे बारहवी शताब्दी के सूफी इ०: अरबी ने भी अपने सिद्धातों मे इसकी महत्ता स्वीकार की है। वह कहता है कि मनुष्य ने जितने प्रकार के देवताको की पूजा का समारभ किया है, उनमे काम ही सबसे मुख्य है। यह काम ही ईश्वर की अभिव्यक्ति का सबसे बडा-व्यापक रूप है।' देवदासियो का प्रचार दक्षिण के मदिरों में वर्तमान है और उत्तरीय भारत मे ईसवी सन् से कई सौ बरस पहले शिव, स्कंद, सरस्वती इत्यादि देवताओ के मंदिर नगर के किस भाग मे होते थे, इसका उल्लेख चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में किया है और सरस्वती मंदिर तो यात्रागोष्ठी तथा संगीत आदि कला-सबंधी समाजो के लिए प्रसिद्ध था । देवदासियां मंदिरो मे रहती थी, परतु वे उस देवप्रतिमा के विशेष अंतनिहित भावों को कला के द्वारा अभिव्यक्त करने के लिए ही रहती थी। उनमे प्रेम-पुजारिनो का होना असंभव नही था। सूफी रबिया से पहले ही दक्षिण भारत की देवदासी अन्दल ने जिस कृष्ण-प्रेम का संगीत गाया था, उसकी आविष्की अन्दल को ही मान लेने मे मुझे तो संदेह ही है। कृष्ण-प्रेम उस मदिर का सामूहिक भाव था, जिसकी अनुभूति अन्दल ने भी की। ऐतिहासिक अनुक्रम के आधार पर यह कहा जा सकता है कि फारस में जिस सूफी-धर्म का विकास हुआ था, उस पर काश्मीर के साधकों का बहुत कुछ प्रभाव था। यो तो एक दूसरे के साथ संपर्क मे आने पर विचारों का थोड़ा बहुत आदान-प्रदान होता ही है; किंतु भारतीय रहस्यवाद Of the Gods man has conceived and worshipped, Ibn Arabi is of opinion that Desire is the greatest and most vital. It is the greatest of the universal forms of His self-expression (M. Ziyauddin in "Vishwabharati.") रहस्यवाद . ५५
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