उसको बुला सकता है, और उसके साथ खेल सकता है, इससे कविता एक जीवन्त चित्र प्रस्तुत कर सकती है। उसी प्रकार संगीत केवल स्वर ही प्रकट कर सकता है। यदि उसमें कुछ कविता न हो तो केवल वह गूंगे का चिल्लाना ही प्रतीत होगा। यदि उसमें कविता का अंश मिला होगा तो कर्ण के साथ ही हृदय को भी आनन्द देगा। कविता जो भावपूर्ण होती है, वह बड़ी हृदयग्राहिणी होती है। चित्त की वृत्तियां जो मानव-हृदय में उदय हुआ करती है, उन्हें भाव कहते हैं । यद्यपि प्राचीन साहित्य में इनको रस के अन्तर्गत 'संचारी' तथा 'स्थायी' के नाम से स्थान मिला है, पर वे भाव उतने ही मे पूरे नही हो सकते, वे केवल उसके स्थूल तथा प्रधान भेद हैं, और बहुत से चित्त के विकास अच्छे और बुरे जो सूक्ष्म रूप से हैं, समयानुकूल, या कार्यवश उत्पन्न हुआ करते हैं, उनमें जो अच्छे हैं, उन्हें उत्कर्ष देना, तथा दुर्वृत्तियों को दमन करना भावमयी कविता का मुख्यतम कार्य है। यद्यपि ये प्राचीन साहित्य में किसी न किसी रूप में विद्यमान है, पर श्रृंगारी कवियों की कृपा से उनकी शृंगारी नायिकाओं में ही उन भावों को आश्रय मिला है। 'उन्माद' जो एक संचारी भाव है, यदि नायिका-विरही नायक को छोड़कर किसी कुकर्मी के सन्तापमय चित्त में वह भाव अंकित किया जाय, तो कैसा प्रभावशाली होगा? इसका अनुभव जिन्होंने अंगरेजी 'म्याकबेथ' नाटक में 'म्याकबेथ- पत्नी' का पार्ट पढ़ा होगा या देखा होगा, वे ही कर सकते हैं । इसी तरह उन भावों का दुरुपयोग होने से भावमयी कविता मनोनीत नहीं मिलती। भावमयी कविता प्रायः दो प्रकार की दिखाई देती है, जैसे कि 'कथामूलक भाव' और 'भावमूलक कविता' । कथामूलक भावों का प्रायः ऐतिहासिक वा पौराणिक काव्यों में समयानुकूल या आवश्यकतानुसार समावेश दिखाई पड़ता है। जैसे 'उत्तर रामचरित' में जब लक्ष्मण, श्रीरामचन्द्र को चित्र दिखलाते हैं, तो उन वन-भूमियों के चित्र को देखकर उनके हृदय में पूर्वस्मृति जागरूक होती है, तब वह जानकीजी से कहते है- अलसललितमुग्धान्यध्वसम्पातखेवा- दशिथिलपरिरम्भर्दत्त सम्वाहनानि । परिमृदितमृणाली दुर्बलान्यंगकानि । त्वमुरसि मममकृत्वा यत्र निद्रामवासा ।। किमपि किमपि मन्दं मन्दमासक्तियोगा- दविरलितकपोलं जल्पतोरक्रमेण । अशिथिल परिरम्भव्यापृतककदोष्णो- रविदित गतयामा रात्रिरेवं व्यरंसीत् । कवि और कविता : २३
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