पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/६१३

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घायल होकर गिरता है/तीन यवन-सैनिक कूदकर आते हैं, इधर से मालव सैनिक पहुंचते हैं] सिंहरण--यवन ! दुस्साहस न करो ! तुम्हारे सम्राट की अवस्था शोचनीय है ले जाओ, इनकी शुश्रूषा करो ! यवन-दुर्ग-द्वार टूटता है और अभी हमारे वीर सैनिक इस दुर्ग को मटियामेट करते हैं ! सिंहरण-पीछे चन्द्रगुप की मेना है मूर्व ? इम दुर्ग में आकर तुम सब बन्दी होंगे। ले जाओ सिकन्दर को-उठा ले जाओ, जब तक और मालवों को यह न विदित हो जाय कि यही वह सिकन्दर है। मालव सैनिक-सेनापनि ! रक्त का बदला ! इम नृशंस ने निरीह जनता का अकारण वध किया है। प्रतिशोध ! सिंहरण-ठहरो, मालव वीगें ! ठहरो, यह भी एक प्रतिशोध है। यह भारत के ऊपर एक ऋण था ! पर्वतेश्वर के प्रति उदारता दिखाने का यह प्रत्युत्तर है। यवन, जाओ.-शीघ्र जाओ! [तीनों यवन मिकन्दर को लेकर जाते हैं घबराया हुआ एक सैनिक आता है]] सिंहरण-क्या है ? सैनिक-दुर्ग द्वार टूट गया, यवन-सेना भीतर आ रही है । सिंहरण-कुछ चिन्ता नही। दृढ रहो। समस्त मालव-सेना से कह दो- सिंहरण तुम्हारे साथ मरेगा। (अलका से) तुम मालविका को साथ लेकर अन्तःपुर की स्त्रियों को भूगर्भ-द्वार से सुरक्षित स्थान पर ले जाओ-अलका ! मालव के ध्वंस पर ही आर्यों का यशो-मन्दिर ऊंचा खडा हो सकेगा-जाओ! [अलका का प्रस्थान/यवन-सैनिकों का प्रवेशदूमरी ओर से चन्द्रगुप्त का प्रवेश और युद्ध/एक यवन सैनिक दौड़ा हुआ आता है] यवन-सेनापति सिल्यूकस ! क्षुद्रकों की सेना भी पीछे से आ गयी है ! बाहर की सेना को उन लोगों ने उलझा रक्खा है । चन्द्रगुप्त- --यवन सेनापति मार्ग वाहते हो या युद्ध ? मुझ पर कृतज्ञता का बोझ है। तुम्हारा जीवन ! सिल्यूकस-(कुछ सोचने लगता है) हम दोनों के लिए प्रस्तुत है ! किन्तु" चन्द्रगुप्त-शान्ति--मार्ग दो ! जाओ सेनापति--सिकन्दर का जीवन बच जाय तो फिर आक्रमण करना। [यवन-सेना का प्रस्थान चन्द्रगुप्त का जयघोष ] यव निका ३८ चन्द्रगुप्त ' ५९३