पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५९७

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चाणक्य-हाँ ! तब क्या हुआ-केलिस्यनीष के अनुयायियों ने क्या किया? चन्द्रगुप्त-उनकी उसेजना से सैनिकों ने विपाशा को पार करना अस्वीकार कर दिया और पवन-देश नोट चलने के लिए बाग्रह करने लगे। सिकन्दर के बहुत अनुरोध करने पर भी वे युद्ध के लिए सहमत नहीं हए । इसलिए रावी के जल- मार्ग से लौटने का निश्चय हुआ है । अब उनकी इच्छा युद्ध की नहीं है । चाणक्य-और क्षुद्रकों का क्या समाचार है ? चन्द्रगुप्त-वे भी प्रस्तुत हैं। मेरी इच्छा है कि इस जगद्विजेता का ढोंग करनेवाले को एक पाठ पराजय का भी पढ़ा दिया जाय । परन्तु इस समय यहाँ सिंहरण का होना अत्यन्त आवश्यक है। चाणक्य-अच्छा देखा जायगा । सम्भवतः स्कन्धावार में मालवों की युद्ध- परिषद् होगी। अत्यन्त सावधानी से काम करना होगा। मालवों को मिलाने का पूरा प्रयत्न तो हमने कर लिया है। चन्द्रगुप्त-पलिये मैं अभी बाया ! (चाणक्य का प्रस्थान) मालविका-यह खेल तो बड़ा भयानक होगा मागध ! चन्द्रगुप्त-कुछ चिन्ता नहीं, अभी कल्याणी नहीं पाई। [एक सैनिक का प्रवेश चन्द्रगुप्त-क्या है? सैनिक-सेनापति! मगध-सेना के लिए क्या आज्ञा है ? चन्द्रगुप्त-विपाशा और शतद् के बीच जहाँ अत्यन्त संकीर्ण भू-भाग है वहीं अपनी सेना रखो। स्मरण रखना कि विपाशा पार करने पर मगध का साम्राज्य- ध्वंस करना यवनों के लिए बड़ा साधारण काम हो जायगा। सिकन्दर की सेना के सामने इतना विराट प्रदर्शन होना चाहिए कि वह भयभीत हो। सैनिक-अच्छा, राजकुमारी ने पूछा है कि आप कबतक आवेंगे? उनकी इच्छा मालव में ठहरने की नही है । चन्द्रगुप्त-राजकुमारी से मेरा प्रणाम कहना और कह देना कि मैं सेनापति का पुत्र हूं, युट ही हमारी आजीविका है। क्षुद्रकों की सेना का मैं सेनापति होने के लिए बामन्वित किया गया है। इसलिए मैं यहाँ रहकर भी मगध की अच्छी सेवा कर सकंगा। सैनिक-सी बाशा ! (जाता है) चन्द्रगुप्त-कुछ सोचकर) सैनिक ! (सैनिक लौट आता है) सैनिक-क्या बाज्ञा है ? चन्द्रगुप्त-राजकुमारी से कह देना कि मगध जाने की उत्कट इच्छा होने पर भी ये सेना को साथ न ले जायें। चन्द्रगुप्त : ५७७