पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५

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प्रसाद वाङ्मय के इस द्वितीय खण्ड (नाटक भाग) में भी पूर्ववर्ती प्रथम खण्ड (काव्य भाग) के अनुसार नाटकों को काल-क्रमानुसार रखा गया है। करुणालय और राज्यश्री पहले 'इन्दु' में प्रकाशित हो चुके थे इसलिए क्रमानुसार उन पूर्व रूपों को भी यहाँ संकलित किया गया है। 'कल्याणी परिणय' का प्रकाशन नागरी प्रचारिणी पत्रिका (अगस्त १९१२) में हुआ था, वहाँ से एकांकी संकलन 'अग्निमित्र' में उद्धृत किया गया है। इसे उसी रूप में रखा गया है। यह कल्याणी परिणय 'चन्द्रगुप्त' नाटक के अंगभूत हो गया (किंचित परिवर्तन पूर्वक)। किन्तु, शिल्प-विकास पर मनन के लिए इसको मूल रूप में रखना आवश्यक था। अतः कालानुरोधेन––सज्जन और प्रायश्चित्त के बाद इसे समावेशित किया गया है।

इन तीन नाटकों के बाद उस राज्यश्री का प्रणयन हुआ जिसे पूज्य पिताश्री ने अपना प्रथम ऐतिहासिक नाटक बताया है। सज्जन और प्रायश्चित्त में भी यद्यपि इतिहास के चरित्र और उसकी घटनाएँ हैं किन्तु वे रूपक––शिक्षा प्रधान है इसलिए अपने ऐतिहासिक नाटकों में उन्हें नहीं माना। इतिहास की वस्तुता उनकी दृष्टि में भिन्न थीं––जिसका उल्लेख आगे यथास्थल होगा। 'सज्जन' का कथानक पाण्डवों के बनवास से संबंधित है। जिसमें उनकी हत्या के उद्देश्य से आये दुर्योधन, कर्ण आदि का गंधर्व राज चित्रसेन से युद्ध होता है कौरव पक्ष परास्त होकर बन्दी होता है। कौरवों का उद्देश्य ज्ञात होने पर भी युधिष्ठिर अर्जुन को आदेश देते हैं। तदनुसार अर्जुन और चित्रसेन कौरवों को बाँधकर युधिष्ठिर के सम्मुख लाते हैं : यह स्पष्ट होने पर भी कि वे पाण्डवों की हत्या के लिए वे आये थे––युधिष्ठिर उन्हें शिक्षा देकर मुक्त कराते हैं। युधिष्ठिर में मानवीय गुण-धर्म के ऐसे उत्कर्ष ने उन्हें धर्मराज की पदवी दी––और, आगे चलकर 'यतोधर्मस्ततोजयः' अन्वित हुआ।

उसके पश्चात् 'प्रायश्चित्त' आता है। ये उभय नाटक इन्दु में प्रकाशित हो चुके हैं। उनमें और 'चित्राधार' में संकलित इनके रूपों में अधिक अन्तर नही है अतः यत्र तत्र के पाठान्तर पादटिप्पणियों में संकेतित हैं। यद्यपि 'रासो' में पृथ्वीराज को बन्दी बनाकर गजनी ले जाया जाना और वहाँ उसका वध होना वर्णित है––किन्तु ऐतिहासिक खोज ने तराइन के युद्ध में उसकी वीरगति को प्रमाणित किया। इस नाटक में उस ऐतिहासिकता की रक्षा की गई है। 'ट्रैजेडी' को पश्चिम की ही वस्तु मानने के उपक्रम में लोग भारतीय मनीषा के दो आलोक स्तंभों––रामायण और

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