पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/४३५

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सैनिक- क्या इसमें भी सन्देह है ? विवेक-कायर ! छोड़ दे नही तो दिखा दूंगा कि इन सूखी हडिडयों में कितना बल है ! सैनिक-जा पागल ! तू क्यों मरना चाहता है ? विवेक - दूसरे की रक्षा मे, पाप का विरोध और परोपकार करने में, प्राण तक दे देने का माहस किग भाग्यवान् को होता है ? नीच. ! आ, देखू तो ! [सैनिक तलवार से प्रहार करने को उद्यत होता है, विवेक सामने तन कर खड़ा होता और उसकी कलाई पकड़ लेता है] सैनिक -अब छोड दो, हाथ टूटता है विवेक - (छोड़कर) इसी बल पर इतना अभिमान ! जा अब सीधा हो जा। देश का कलंक धोने में हाथ बंटा, कल परीक्षा होगी। सैनिक- पिता ! क्षमा करो; जो आज्ञा होगी, मैं और मेरे साथी, सब वही करेंगे। विवेक-स्मरण रखना । (दोनों सिर झुकाकर जाते है) दृश्या न्त र अष्टम दृश्य [सैनिक न्यायालय में रानी और सैनिक लोग बैठे हैं, एक ओर से विलास, दूसरी ओर से लालसा का प्रवेश] विलास रानी, यह बन्दिनी स्त्री बडी भयानक है। हमारी सेना के ममाचार लेने आधी थी ! इगको दण्ड देना चाहिए। लालसा-और एक व्यक्ति मेरे मण्डप में भी है। यह भी कुछ ऐसा ही जान पड़ता है । दोनो का माथ ही विचार हो। [रानी के संकेत करने पर चार मैनिक जाते हैं और दोनों को ले आते हैं, शत्रु-सैनिक और स्त्री दोनों एक दूसरे को देख चीत्कार करते हैं] विलास यह स्त्री प्राण-दण्ड के योग्य है । इमने सेना का मब भेद जान लिया था। यदि यह पकड़ न ली जाती, तो उस दिन के युद्ध मे हम लोगों को पराजित होना पड़ता। लालसा-और सीमा पर मैं इस पुरुष से मिली । यदि मैं इसे भुलावा देकर न ले आती, तो यह मेरा बड़ा अपमान कर '. जो इस जाति के लिये कलंक की बात होती। रानी--विलास! कामना:४१५