पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/३९९

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भोग करे। नियमों के भले बुरे, दोनों ही कर्तव्य होते हैं, प्रतिफल भी उन्हीं नियमों मे से एक है। कभी-कभी उसका रूप अत्यन्त भयानक होता है, उससे जी घबराता है। परन्तु मनुष्यों के कल्याण के लिए उसका उपयोग करना ही पड़ेगा, क्योंकि स्वयं प्रकृति वैसा करती है। देखो, यह सुन्दर फूल झड़कर गिर पड़ा। जिस मिट्टी से रस खीचकर फूला था, उसी मे अपना रंग-रूप मिला रहा है। परन्तु विश्वम्भरा इस फूल के प्रत्येक केसर बीज को अलग-अलग वृक्ष बना देगी, और उन्हें सैकड़ों फूल देगी। कामना-इसमें तो बड़ी आशा है। विलास-इसी का अनुकरण, निग्रह-अनुग्रह की क्षमता का केन्द्र प्रतिफल की अमोघ शक्ति से यथाभाग सन्तुष्ट रखने का साधन, राजशक्ति है। इस देश के कल्याण के लिये उसी तन्त्र का तुम्हारे द्वारा प्रचार किया गया है, और तुम बनायी गयी हो रानी, और रानी का पुरुष कौन होता है, जानती हो ? कामना-नही, बताओ। विलास-राजा । परन्तु मै तुम्हे ही इस द्वीप की एकच्छत्र अधिकारिणी देखना चाहता हूं। मे हिस्सा नही बँटाना चाहता ! कामना-तब मेरा रानी होना व्यर्थ था। विलास-परन्तु तुम्हारी सब सेवा के लिए मैं प्रस्तुत हूँ। कामना, तुम द्वीप- भर मे कुमारी ही बनी रह कर अपना प्रभाव विस्तृत करो। यही तुम्हारे रानी बनने के लिए पर्याप्त कारण हो जायगा। कामना-यह क्या ? झूठ ! विलास-मै जो कहता हूँ। चलो, वे लोग दूर निकल गये होगे। (दोनों जाते हैं) दृश्या न्त र द्वितीय दृश्य [पथ में विवेक] विवेक -डर लगता है। घृणा होती है। मह छिपा लेता हूँ। उनकी लाल आँखो में क्रूरता, निर्दयता और हिसा दौडने लगी है। लोभ ने उन्हे भेडियों से भी भयानक बना रखा है। वे जलते-बलती आग में दौडने के लिये उत्सुक है। उनको चाहिये कठोर सोना और तरल मदिरा-देखो-देखो, वे आ रहे है। (अलग छिपाता) [मद्यप की-सी अवस्था में दो द्वीपवासियों का प्रवेश] पहला-अहा ! लीला की कैसी सुन्दर गढ़न है । कामना : ३७९