पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/३९६

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कामना-अब क्या होगा? विलास [--इस खेल में एक व्यक्ति बीच में रहेगा, जो सब की देख-रेख करेगा। कामना तुम्हीं रहो। बिलास-नहीं, मुझको तो आज अभी बताना पड़ेगा । आज तुम्हीं देखो। और तुम तो इन लोगों में मुख्य हो भी। सब-ठीक कहा। विलास-अच्छा, तो कामना ! इस खेल की तुम रानी बनोगी। जब तुम कहोगी तभी यह खेल बन्द होगा--समझीं ! सब-अच्छी बात है। [विलास चन्द्रहार और कंकण कामना को पहनाता है, सब आश्चर्य से देखते हैं] विनोद -कामना रानी है। विलास-सचमुच रानी है। [कामना के संकेत करने पर नृत्य आरम्भ होता है, और विलास गाता है, सब उसका अनुकरण करते हैं] पी ले प्रेम का प्याला भर ले जीवन-पात्र में यह अमृतमयी हाला सृष्टि विकासित हो आँखों में, मन हो मतवाला मधुप पी रहे मधुर मधु, फूलों का सानन्द, तारा-मद्यप-मंडली चषक भरा यह चन्द सजा अपानक निराला। पीले..." [संब उन्मत्त होकर नाचते-नाचते मद्यप की चेष्टा करते हैं, विवेक का प्रवेश, आश्चर्यचकित होकर देखता है] विलास-कौन ? विवेक-यह नरक है या स्वर्ग ? विलास--बुड्ढे ! इसे स्वर्ग कहते हैं । तुम कैसे जान गये ? विवेक-तो इसी स्वर्ग में नरक की सृष्टि होगी। भागो-मागो। विलास -पागल है। सब-पागल है ! पागल है ! [विवेक क्षोभ से भागता है] यव निका ३७६: प्रसाद वाङ्मय