पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/३८८

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हुआ कि इस देश पर कोई आपत्ति शीघ्र आया चाहती हैं। परन्तु में तनिक भी विचलित न हुई । मैं तो तेरे ब्याह का श्रृंगार करने आपी हूँ। तू कह। लीला --आज वन-लक्ष्मी मुझसे न जाने कहाँ-कहाँ की कैसी-कैसी बातें कह गयी। कामना-वन-लक्ष्मी! भला, वह तेरे सामने आयी ! आश्चर्य ! क्या लीला-कहाकि कामना के हाथों से देश का विनाश होगा। तू उसका साथ न दे, और उस चमकीली वस्तु की चाह कभी न करना जैसी कामना पास है, क्योंकि वह ज्वाला है । और भी न जाने क्या-क्या कह गयी। कामना -हूँ। तूने क्या कहा ? लोला-मैंने कहा कि वह मेरी सखी हैं, मैं उसे न छोडूंगी। (आलिंगन करती है) कामना-प्यारी लीला, वह मैं तुझे अवश्य दिलाऊंगी, अधीर न हो । तू जैसे भ्रान्त हो गयी है । वह पेया, जो मैंने भेजी है, कहाँ है ? थोड़ी उसमें से पी ले। लीला-ओह ! उसे तो और भी मना किया है। कामना-(हंसती हुई पात्र उठाकर) अरे ले भी, अभी थकावट दूर होती है। (लीला और कामना पीती हैं) लीला-बहन, इसके पीते ही तो मन दूसरा हुआ जाता है । कामना-बड़ी अच्छी वस्तु है। लीला-ऐसी पेया तो नही पी थी। यह कहां से ले आयी? कामना-एक दिन मैं और विलास, दोनों, नदी के किनारे से बहुत दूर निकल गये । फिर वहाँ प्यास लगी; परन्तु नदी तक लौटने में विलम्ब होता। एक तरबूज आधा पड़ा था, उसमें सूर्य की गरमी से तपा हुआ उसी का रस था हम दोनों ने आधा-आधा पी लिया। बड़ा आनन्द आया । अब उसी रीति से बनाया करती हूँ। कामना-(मद विह्वल होती है) कामना, तू वन-लक्ष्मी है। वह जो आयी थी, मुझे भुलाने आयी थी। तू क्या है, सुगन्ध की लहर है। चांदनी की शीतल चादर है । अः (उठना चाहती है) कामना-(लीला को बिठाकर) तू बैठ, आज मिलन-रात्रि है। विनोद के आने का समय हो गया। लोला-विनोद ! कौन ! नही कामना ! सन्तोष ! मेरा प्यारा सन्तोष ! तुमने तो ब्याह न करने का निश्चय किया है ? कामना--कैसी है तू ! वह मेरा निर्वाचित है ! मै चाहे ब्याह करूं या नहीं परन्तु वह तो सुरक्षित रहेगा-समझी लीला ! तेरे लिए तो विनोद ही उपयुक्त है। ३६८: प्रसाद वाङ्मय