पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/२८७

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विरुद्धक-किन्तु मल्लिका ! अतीत में तुम्हारे ही लिये मेरा वर्तमान बिगड़ा। पिता ने जब तुमसे मेरा ब्याह करना अस्वीकार किया, उसी समय से मैं पिता के विरुद्ध हुआ और उस विरोध का यह परिणाम हुआ। मल्लिका-इसके लिये मैं कृतज्ञ नही हो सकती। राजकुमार ! तुम्हारा कलंकी जीवन भी बचाना मैंने अपना धर्म समझा । और यह मेरी विश्वमंत्री की परीक्षा थी। जब इसमे मै उत्तीर्ण हो गयी तब मुझे अपने पर विश्वास हुआ। विरुद्धक, तुम्हारा रक्त-कलुषित हाथ मै छू भी नही मकती। तुमने कपिलवस्तु के निरीह प्राणियों का, किसी की भूल पर, निर्दयता से वध किया, तुमने पिता से विद्रोह क्यिा विश्वासघात किया; एक वीर को छल से मार डाला और अपने देश के, जन्मभूमि के विरुद्ध अस्त्र ग्रहण किया ! तुम्हारे ऐसा नीच और कौन होगा ! किन्तु यह सब जानकर भी मैं तुम्हे रणक्षेत्र से सेवा के लिये उठा लायी। विरुद्धक -तब क्यो नही मर जाने दिया ? क्यो इस कलंकी जीवन को बचाया और अब"। मल्लिका-तुम इमलिये नही बचाये गये कि फिर भी एक विरक्ता नारी पर बलात्कार और लम्पटता का अभिनय करो। जीवन इसलिये मिला है कि पिछले कुकर्मो का प्रायश्चित करो, अपने को सुधारो। [श्यामा का प्रवेश] श्यामा-और भी एक भयानक अभियोग है-इस नर-राक्षस पर ! इसने एक विश्वास करने वाली स्त्री पर अत्याचार किया है, उसकी हत्या की है ! शैलेन्द्र ? विरुद्धक-अरे श्यामा ! श्यामा-हाँ शैलेन्द्र, तुम्हारी नीचता का प्रत्यक्ष उदाहरण मै अभी जीवित हूँ। निर्दय ! चाण्डाल के समान क्रूर कर्म तुमने किया | ओह, जिसके लिये मैने अपना सब छोड दिया, अपने वैभव पर ठोकर लगा दी, उसका ऐसा आचरण ? प्रतिहिंसा और पश्चात्ताप से सारा शरीर भस्म हो रहा है ! मल्लिका - विरुद्धक । यह क्या, जो रमणी तुम्हे प्यार करती है, जिसने सर्वस्व तुम्हे अर्पण किया था, उसे भी तुम न चाह सके ! तुम कितने क्षुद्र हो? तुम तो स्त्रियो की छाया भी छू सकने के योग्य नही हो । विरुद्धक-मै इसे वेश्या समझता था। श्यामा-और मैं तुम्हें डाक समझने पर भी चाहने लगी थी। इतना तुम्हारे ऊपर मेरा विश्वास था। तब मै नही जानती थी कि तुम कोसल के राजकुमार हो ! मल्लिका-यदि तुम प्रेम का प्रतिदान नही जानते हो तो व्यर्थ एक सुकुमार नारी को लेकर उसे पैरो से क्यों रोदते हो . विरुद्धक ! क्षमा मांगों; यदि हो सके तो इसे अपनाओ! अजातशत्रु: २६७