पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/२८

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समुशत रतनों को भार सों जे उतारें। वह कुसुम जुहा के भूषनों को सुधारें। (उसास लेकर) हे विश्वम्भर ! जिनहिं बढ़ायो मान सों, न करु तासु अपमान । कुलवारन को कुल यही, रहै जगत सनमान । नकुल और सहदेव-आर्य ! अभी जल नही आया ? युधिष्ठिर-(नेपथ्य की ओर देखकर) बच्चा घबराओ मत, वह भीम आते है। [भीम का जल लिए प्रवेश । भीम लोटा रख कर जोर से हंसता है। युधिष्ठिर और अर्जुन पूछते हैं, पर वह केवल हँसता है] युधिष्ठिर-(हंस कर) वत्स भीम ! क्या है ?१५ भीम-(हंसते हुए) आर्य ! कुछ नही, बहुत अच्छा हुआ। युधिष्ठिर-अरे सुनूं भी, क्या अच्छा हुआ ? भीम-अच्छा कहूँ, नही नहीं नही नही. आपमे नही। धनंजय | इधर आओ तुमसे कह दे। महाराज मे तुम्ही कहो, हमको तो हँसी रोके से नही रुकती है। (हंसता है। युधिष्ठिर इङ्गित करते हैं। अर्जुन उठ कर जाते हैं। भीम कुछ कान में कहता है) अर्जुन-(युधिष्ठिर" के पास आकर) आर्य ! भीम जल लेने के लिये द्वत सरोवर पर गये थे, वहाँ देखा तो दुर्योधन और गन्धर्वो मे घोर युद्ध हो रहा है, फिर परिणाम यह हुआ कि वे सब दुर्योधन को पकड़ ले गये। युधिष्ठिर-(खड़े होकर) वत्म भीम ! तुम वहाँ रहो और तुम्हारे" सन्मुख दुर्योधन को पकड कर वे सब ले जाये और तुम कुछ" न -करो ! छिः छिः ! भीम-महाराज ! इसी सज्जनता के कारण तो आपकी यह दशा है। मैं तो ऐसी बातों का पक्षपाती नही हूँ। युधिष्ठिर- विपत्ति मे मानव को निरेखि के, सुखी करै चित्त मुमोद लेखि के। अहै वही नीच महान नारकी, तजौ यही वात बुरे विचार की। १६. महाराज १७. महाराज १५ है क्या? १८. तू वहाँ रहा २१. तूने २२. नहीं दिया २०. गये १२:प्रमाद वाङ्मय