पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/२६२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[एक दासी का प्रवेश] दासी-स्वामिनी ! दण्डनायक ने कहा है कि श्यामा की आज्ञा ही मेरे लिए सब कुछ है । हजार मोहरों की आवश्यकता नही, केवल एक मनुष्य उसके स्थान पर चाहिये, क्योंकि सेनापति की हत्या हो गयी है, और यह बात भी छिपी नही है कि शैलेन्द्र पकड़ा गया है। तब, उसका कोई प्रतिनिधि चाहिये जो रातोरात सूली पर चढ़ा दिया जाय । अभी किसी ने उसे पहचाना भी नहीं है। श्यामा-अच्छा, सुन चुकी। जा, शीघ्र संगीत का सम्भार ठीक कर; एक बड़े सम्भ्रान्त सज्जन आये है । शीघ्र जा, देर न कर- [दासी जाती है] (स्वगत)-स्वर्ण-पिञ्जर मे भी श्यामा को क्या वह सुख मिलेगा-जो उसे हरी डालो पर कमैले फलों को चखने मे मिलता है ? मुक्त नील गगन में अपने छोटे-छोटे पंख फैलाकर जब वह उडती है, तब जैसी उमकी सुरीली तान होती है, उसके सामने तो सोने के पिंजड़े मे उसका गान क्रन्दन ही है। मै उसी श्यामा की तरह, जो स्वतन्त्र है, राजमहल की परतन्त्रता से बाहर आयी हूँ। हँसूंगी और हंसाऊँगी, रोऊँगी और रुलाऊंगी ! फूल की तरह आयी हूँ, परिमल की तरह चली जाऊंगी। स्वप्न की चन्द्रिका मे मलयानिल की सेज पर खेलंगी। फूलो की धूल से अंगराग वनाऊँगी, चाहे उसमे कितनी ही कलियाँ क्यो न कुचलनी पड़े | चाहे कितनो ही के प्राण जायं, मुझे कुछ चिन्ता नही ! कुम्हला कर, फूलो को कुचल देने मे ही सुख है। . [समुद्रदत्त का प्रवेश] श्यामा-(खड़ी होकर)-कोई कष्ट तो नही हुआ ? दासियां दुविनीत होती हैं, क्षमा कीजियेगा। समुद्रदत्त-सुन्दरियो की तुम महारानी हो और तुम वास्तव में उसी तरह रहती भी हो, तब, जैसा गृहस्थ होगा, वैसे ही आतिथ्य की भी सम्भावना है-बड़ा सुख मिला, हृदय शीतल हो गया ! श्यामा-आप तो मेरी प्रशंसा करके मुझे बार-बार लज्जित करते है। समुद्रदत्त-सुन्दरी | मैं कह तो नही सकता; किन्तु मैं बिना मूल्य का दास हूँ। अनुग्रह करके कोमल कण्ठ मे कुछ सुनाओ। श्यामा -जैसी आज्ञा। [बजाने वाले आते हैं] [गान और नृत्य] चला है मन्थर गति में पवन रसीला नन्दन कानन का नन्दन कानन का, रसीला नन्दन कानन का ॥चला है॥ २४२: प्रसाद वाङ्मय