पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/२४५

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वसन्तक-केवल खलबट्टा चलाते रहे और मूर्खता का पुटपाक करते रहे। महाराज ने एक नयी दरिद्र कन्या से ब्याह कर लिया है, मिथ्या विहार करते-करते उन्हें बुद्धि का अजीर्ण हो गया है। महादेवी वासवदत्ता और पद्मावती जीर्ण हो गयी हैं, तब कैसे मेल हो ? क्या तुम अपनी औषधि से उन्हे विवाह करने के समय की अवस्था का नही बना सकते जिसमें महाराज इम अजीर्ण से बच जायें ? जीवक-तुम्हारे ऐसे चाटुकार और भी चाट लगा देगे, दो-चार और जुटा देंगे। वसन्तक-उसमें तो गुरुजनो का ही अनुकरण है ! श्वसुर ने दो ब्याह किये, तो दामाद ने तीन । कुछ उन्नति ही रही। जीवक-दोनों अपने कर्म के फल भोग रहे है। कहो, कोई यथार्थ बात भी कहने-सुनने की है या यही हँसोड़पन ? वसन्तक--घबराइये मत । बडी रानी वासवदत्ता पद्मावती को सहोदरा भगिनी की तरह प्यार करती है। उनका कोई अनिष्ट नहीं होने पावेगा। उन्होंने ही मुझे भेजा है और प्रार्थना की है कि "आर्यपुत्र की अवस्था आप देख रहे हैं, उनके व्यवहार र गाल न दीजियेगा। पद्यावती मेरी सहोदरा-सी है, उसकी ओर से आप निश्चिन्त रहे । कोसल से समाचार भेजियेगा।" नमस्कार ! (हंसता-हंसता जाता है) जीवक-अच्छा, अब मैं भी कोसल जाऊँ। (जाता है) दृश्या न्त र सप्तम दृश्य [श्रावस्ती में राजसभा, प्रसेनजित् सिंहासन पर और अमात्य, अनुचरगण यथास्थान बैठे हैं]] प्रसेनजित्-क्या यह सब सच है सुदत्त ? तुमने आज मुझे एक बड़ी आश्चर्यजनक बात सुनायी है। क्या सचमुच अजातशत्रु ने अपने पिता को सिंहासन से उतारकर उनका तिरस्कार किया है ? सुदत्त-पृथ्वीनाथ ! यह उतना ही सत्य है, जितना श्रीमान् का इस समय सिंहासन पर बैठना। मगध-नरेश से एक षड्यन्त्र के द्वारा सिंहासन छीन लिया गया है। विरुद्धक-मैंने तो सुना है कि महाराज बिम्बिसार ने वानप्रस्थ-आश्रम स्वीकार किया है और उस अवस्था में युवराज का राज्य संभालना अच्छा ही है। प्रसेनजित्-विरुद्धक ! क्या अजात की ऐसी परिपक्व अवस्था अवस्था है कि मगध नरेश उसे साम्राज्य का बोझ उठाने की आज्ञा दें ? १५ अजातशत्रु : २२५