पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/९५

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जैसा आप कहेगे वैसा ही हागा । आपका समय पर ठीक समाचार मिलेगा । डाक्टर साहब दया कीजिये ।-यमुना ने कहा। ___डाक्टर ने रूमाल निकालकर सिर पोश और मगल के दिए हुए कागज पर औषधि लिखी । मगल ने किशोरी से रुपया लिया और डाक्टर के साथ ही वह औपधि लने चला गया। मगल और यमुना की अविराम सेवा से आठव दिन विजय उठ बैठा । किशोरी बहुत प्रसन हुई । निरजन भी तार द्वारा समाचार पाकर चले आये थे। ठाकुरजी की सेवा-पूजा की धूम एक बार फिर मच गई। विजय अभी दुर्वल था। पन्द्रह दिना में ही वह छ महीन का रोगी जान पडता था । यमुना आज-कल दिन रात अपन अनदाता विजय के स्वास्थ्य की रखवाली करती थी, और अव निरजन के आकुरजी की ओर जाने का उसे अव सर ही न मिलता था। जिस दिन विजय वाहर आया वह सीधे मगन के कमरे म गया । उसके मुख पर सकोच, और आंखो म क्षमा थी । विजय के कुछ कहने के पहले ही मगल ने उखडे हुए शब्दों में कहा-विजय | मेरी परीक्षा भी समाप्त हो गई और नौकरी का प्रवन्ध भी हो गया । मैं तुम्हारा वृतज्ञ हूँ। आज ही जाऊंगा आज्ञा दो। नही मगल । यह ता नही हो सकता हत-कहत विजय की आँख भर आई। विजय । जब मैं पेट की ज्वाला से दग्ध हो रहा था, जव एक दाने का कही ठिकाना नहीं था, उस समय मुझे तुमने अवतम्ब दिया, परन्तु मै उस योग्य न था । मैं तुम्हारा विश्वास-पान न रह सका, इसलिए मुझे छुट्टी दो। ___ अच्छी बात है, तुम पराधीन नही हो । पर मा ने देवी के दर्शन का मनौती की है इसलिए हम लोग वहाँ तक तो साथ ही चलें । फिर जैसी तुम्हारी इच्छा। मगल चुप रहा। विशारी न मनौती की सामग्री जुटानी आरम्भ की। शिशिर बीत रहा था। यह निश्चय हुआ कि नवरात्र म चला जाय। मगन को तब तक सुपचाप ठहरना दुत्सह ही उठा । उसके शान्त मन म बार-बार यमुना की सेवा और विजय की वामारी-य दाना वात लडकर हलचन मचा दती थी। वह न-जाने केसी कल्पना म उन्मत्त हा उठता । हिंसक मनोवृत्ति जाग जाती। उस दमन करन म वह असमर्थ था ! दूसरे ही दिन विना किमी स कहे मुन मगल चला गया । ककाल ६५