पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/८९

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विजय को इन दोना रहस्यपूर्ण व्यक्तियो के अध्ययन का वडा कुतूहल होता । एक जोर सरल प्रसन, अपनी अवस्था स सन्तुष्ट मगल, दूसरी आर सबको प्रसन करने की चेष्टा करने वाली यमुना की रहस्यपूर्ण हंसी । विजय विस्मित था । उसके युवक हृदय का दो साथी मिले थे-एक घर के भीतर, दूसरा वाहर । दोना ही सयत भाव के आर फूक-फूककर पैर रखन वाल । वह इन दोना में मिल जान की चेष्टा करता । एक दिन मगल और विजय बैठे हुए भारतीय इतिहास का अध्ययन कर रहे थे। कोर्स तैयार करना था। विजय न वहा–भाई मगल । भारत के इतिहास में यह गुप्त-वश भी वडा प्रभावशाली था, पर इसक मूल पुरुप का पता नहीं चलता। गुप्त-वश भारत क हिन्दू इतिहास का एक उज्ज्वल पृष्ठ है । सचमुच इसक साथ बडी-बडी गौरव-गाथाआ का सम्बन्ध है। ---बडी गम्भीरता स मगल न कहा । परन्तु इसक अभ्युदय म लिच्छिविया क नाश का बहुत कुछ अश है । क्या लिच्छिविया के साथ इन लोगा न विश्वासघात ता नही किया ? ---विजय न पूछा। हा, वैसा ही उनका जन्त भी ता हुआ। दखा, थानसर के एक कोन स एक साधारण सामन्त-वश गुप्त सम्राटा से सम्बन्ध जोड लन म कैसा सफल हुआ। और, क्या इतिहास इसका साक्षा नहीं है कि मगध के गुप्त सम्राटा का वडा सरनता स उनके मानवीय पद स हटाकर ही हपवर्धन उत्तरापथेश्वर बन गया था । यह ता ऐस ही चला करता है। -मगल ने कहा। तो ये उनस बढकर प्रतारक थे, यह वर्धन-वश भी-विजय कुछ और कहा ही चाहता था कि मगल ने रोक्कर कहा-ठहरो विजय | वर्धनो प्रति एम शब्द कहना कहाँ तक सगत है ? तुमको मालूम है कि ये अपना पाप भी छिपाना नही चाहत । देखो, यह वही यत्र है जिसे तुमने फक दिया था । जो कुछ इसका अर्थ प्रोफेसर दव न किया है, उसे देखो तो-कहते-कहते मगल न जेब स निकालकर अपना यत्र और उसके साथ एक कागज फक दिया। विजय न यत्र तो न उठाया, कागज उठाकर पढने लगा____ शकमण्डलेश्वर महाराजपुत्र राज्यवर्धन इस लेख क द्वारा यह स्वीकार करत है कि चन्द्रलखा का हमारा विवाह-सम्बन्ध न होते हुए भी यह परिणीता वधू क समान पवित्र और हमारे स्नह को मुन्दर कहानी है। इसलिए इसके वशधर ककाल २६