पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/५४१

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लेखक प्रसाद जो के निर्माण में उनके व्यक्तिगत जीवन की दुर्घटनाओ का कम योगदान नही है । ११ वर्ष को अवस्था मे पिता को मृत्यु, १७ वर्ष की अवस्था मे बडे भाई श्री शभुरत्न जी को मृत्यु से घर-गृहस्थी का सारा भार अल्पायु मे ही उनके ऊपर आ पड़ा । लेकिन जीवन की कटु यथार्थताओ ने उन्हे साहित्य-रचना से कभी भी विरत नही किया, बल्कि इसके ठीक प्रतिकूल उनके लेखन को और अधिक धारदार बनाया । उन्होने अपने निजी यथार्थ-जीवन और रचनात्मक कल्पनालोक मे अद्भुत संगति स्थापित की। इसी के फलस्वरूप उन्होने साहित्य मे एक नवीन 'स्कूल' और नवीन जीवनदर्शन की स्थापना की। वे "छायावाद' के सस्थापको और उन्नायकों मे सर्वश्रेष्ठ अपने ४८ वर्षों के छोटे से जोवन-काल प उन्होने कविता, नाटक, उपन्यास, कहानी और आलोचनात्मक निबन्ध, सभी विधाओ मे समान रूप से उच्चकोटि की रचनाएँ प्रस्तुत की । उनका सम्पूर्ण साहित्य आधुनिक हिन्दी साहित्य का प्रामाणिक दर्पण है, जिसमे अतीत के माध्यम से वर्तमान का चेहरा झाकता है।