पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/५३५

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इसे तो " वह रुक गया। कही बात कडवी न हो जोय, वह भी एक रमणी के प्रति । किन्तु मणिमाला कब रुकने वाली थी। उसने कहा-"महोदय । मेरी एक सखी ऐसी कुशल नृत्य-कला जानती है कि वह आपकी वीणा की भूलो को सहज ही पकड लेगी।" प्रगल्भता युवव को खली नहीं । उसने मन-ही-मन उस अज्ञात नर्तकी का आवाहन किया। सब लोग बैठन के स्थान पर आ गए थे । कालिन्दी और इरावती भी उठ कर खडी हो गई, किन्तु उसका मुख अभी भी नहीं दीख पडता था । बडे-बड़े उपाधाना के सहारे चारो पुरुप बैठे। और स्त्रिया उपाधानो को आगे करके उन्ही पर भार देकर । इससे कुछ जैसे छिपाव भी हो जाता था। अग्निमित्र जैसे अन्यमनस्क-सा वैठ रहा था। उसके मन मे अपनी व्यर्थता और लक्ष्यहीनता व्याप्त हो रही थी। युद्ध म उसको आवश्यकता थी। उसे कदाचित् युद्ध की नही । जव जीवन का केवल एक पार्श्व चित्र ही उपस्थित होकर मनुष्य की दुर्बलता को उसकी अन्य सम्भावनाओ से ऊपर कर लेता है, तव उसकी स्वाभाविक गति जकडी-सी बन जाती है । अग्निमित्र के पास उसकी निज की अभिमान की कोई वस्तु, हृदय से चाहने की लालसा नही रह गयी थी । यद्ध । सो तो होना ही है । कल लड लगे, हो सका तो विजय प्राप्त करेंगे, नही तो प्राण दे देगे । बस इतना ही तो । उस जैसे ढीला-सा सतोप था, उसने अपनी दुर्बलता का बोझ भाग्य से ही किसी पर लादने की सफलता नही प्राप्त की। तो फिर चलने दो। यह सगीतक भी अच्छा ही रहेगा । वह सोच रहा था और वीणा की द्रुतगति समाप्त हो रही थी। कालिन्दी और इरावती के बीच म मणिमाला बैठ गई थी। मणिमाला ने धीरे से कहा-"मुना बहन ! यह युवक मरे वीणा बजाने वाले को मूर्ख समझता है और हम सब को भी, मैने उससे कह दिया है कि हम लोगो की एक सखी नृत्य-कला में बड़ी कुशल है। तुम बजाओ तो।" मणिमाला इस समय चचल हो रही थी। और इरावती देख चुकी थी अग्निमित्र को । बद्र जैसे शिथिल. असयत और विमूढ-सी होने जा रही थी। सहसा कालिन्दीन टोक दिया-"पहले बजने भी दो इरावती हम लोगो की बात रख लेगी।" स्त्रियो की यह पसफ्साहट बन्द हो गई, क्याकि वीणा और मृदग भी मौन हो गये थे। युवक ने वीणा उस वादक के हाथ से लेकर उसको कुछ ठीक-ठाक किया। फिर मुदगवादक की मरि देखा । वह एक ललकार थी। मृदग पर मघर थाप पडी। वीणा का विलम्बित स्वर-समारोह आरम्भ होने म अभी विलम्ब था. इरावती : ५१५