पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/५०४

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मामन की कोठरी को घेर लिया। कालिन्दी क्षण-भर के लिए चञ्चल हुई। उसन अग्नि से जाकर कहा-"अब क्या होगा?" "क्या ?" "उसी म इरावती है । "इरावती 1" रोप और घृणा स अग्निमित्र न उत्तेजित होकर पूछा । फिर दखा, तो एक उल्काधारी कोठरी में घुसना ही चाहता है । अग्निमित्र व्यात्र की तरह एक छलाग मार कर उसके सिर पर जा पहुंचा । उल्ला बुझ गई। घोर अधकार छा गया । अग्निमित्र ने अब तक दो सैनिका को घायल कर दिया था। उसकी रण-गर्जना भीषण होने लगी। ज्यो-ज्या शत्रु पक्ष जुटकर आता, घायल होकर उम पीछे हटना पडता । कालिन्दी बडी विपत्ति में पड़ गई। वह सोचने लगी, “अब क्या होगा?" अकस्मात् उसके स्वस्तिक-दल के दो व्यक्ति आ गये । कालिन्दी न तोव कण्ठ से पुकारा-"सहायता कीजिए । य लाग न जाने कहाँ म आकर मन्दिर के समीप रक्तपात कर रह हैं।" उल्का जल उठी। अग्निमित्र ने देखा कि वह बुरी तरह घिर गया है । जार किवाड खोलकर इरावतो खडी है। अग्निमित्र ने क्रोध स वहा । "इरावती । भीतर हटो।" "नही, मेरे लिए रक्तपात को आवश्यकता नही, में चलती हूँ। इरावती न दृढ कण्ठ म कहा। ____ अग्निमित्र को घाव तो लग सुक थ, तिस पर यह मानसिक उथल-पुथल । वह विमूढ-सा कुछ सोचने लगा । सहसा उसके सिर पर एक कठोर आघात हुआ और वह मूच्छित होकर गिर पड़ा । कालिन्दी ने क्षण-भर विचार किया। उसने अपने दल वालो को रोक कर कहा-“ठहरा । इरावती को ले जाने दो। हम लोगो को क्या ?" ___ आक्रमणकारियो न इरावती का पकड लिया और अपने घायल सैनिको का उठाकर वहाँ से प्रयाण किया । अब कालिन्दी आहत अग्निमित्र के पास आई, और पुजारीवाला कोठरी मे उसे ले जाकर सुला दिया। उपचार करने लगी। सिर में चोट गहरी न थी। घावो पर पट्टी बाँध दी गई । दूध लाने के लिए कहकर वह स्वय पखा झलने लगी। स्वस्तिक-दल के दूसरे व्यक्ति ने कहा-"यह आकस्मिक घटना थी कि हम लोग पहुँच गये । मुझे सन्देह था कि कदाचित् यही आपस भेट हो जाय । एक समाचार कहना आवश्यक था। "क्या ४८६. प्रसाद वाङ्मय