पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४७२

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बाहरी ऊंचे स्तम्भा के सहारे भीपण भाले लिए हुए प्रहरी मूर्ति-स खडे थे। सीढियो पर धनुर्धरो की पक्ति, फिर नीचे विशाल प्रागण में अश्वाराहियो के कई झुण्ड थे, जिनके खुले हुए खड्ग से प्रभात के आलोक मे तीव्र प्रभा झलक रही थी । आज साम्राज्य-परिषद् का विशेष आयोजन था । मण्डप के भीतरी स्तम्भो से टिके हुए प्रतिहार स्वर्ण-दण्ड लिए खडे थे , धनुर्धरा को पक्ति में से खुली हुई राह से साम्राज्य के कुमारामात्य, बलाधिकृत दण्डनायक व्यावहारिक, सेना क महानायक लोग धीरे-धीरे सीढी से चढकर भण्डप गर्भ मे रक्खे हुए मचो पर बैठ रहे थे । सबके मुख पर आतक और व्याकुलता थी। स्वर्ण-जटित द्वार के समीप साम्राज्य का ऊँचा सिंहासन अभी खाली था। एक साथ ही तूय, शख पटह की मन्द ध्वनि से वह प्रदेश गूंज उठा । स्वर्णकपाट के दोना ओर खडे कवचधारी प्रहरियो ने स्वर्ण-निर्मित राज-चिह्न को ऊपर उठा लिया । द्वार खुल पडा। यवनियो का दल छोटे-छोटे चौडी धार वाले खड्ग हाथ मे लिये निकला। एक परिक्रमा कर उन्होंने राजसिंहासन के चारा ओर निर्दिष्ट स्थान पर अपना पैर जमाया। फिर छोटी बाभुरी और डफली लिये मागधी नर्तकियो का दल सभा-मण्डप को नुपूर से गुजारित करते हुए बायी ओर जाकर खडा हो गया। फिर तो ताता-सा लग गया । भृङ्गार, पटद्रुह ताम्बूल-करण्डक, धूम्र-भाजन-जिसम से अगुरु-कस्तूरी की भीनी महक निकल रही थी-लिये, रूप यौवनशालिनी अन्त पुरिकाएँ, अनुचरियाँ सिंहासन के समीप आकर खड़ी हो गईं। कटिबन्ध के कृपाण और हाया म त्रिशूल लिए कौशेय वसना युवतिया का अग-रक्षक दल पीछे अर्द्ध चन्द्राकार बना रहा था। उनके आगे सम्राट् और राज-महिपी ने उसी द्वार से मभा म प्रवेश किया। सव लोग खडे हो गये। तीव्र तूर्य-निनाद स दिशाएँ प्रतिध्वनित हो गई। सम्राट सिंहासन पर बैठे। महिषी ने अर्द्धआसन ग्रहण किया। अमात्य और सामन्तो न वन्दना को । महारानी ने ताम्बूलवाहिनी की ओर सकेत किया । उमन ताम्बूलकरण्डक आगे बढाया। महिषी न अपने हाथ में लेकर सम्राट् के सम्मुख उसे उपस्थित किया । स्मित से महाराज ने ग्रहण किया । जय जयकार स सभामण्डप गूंज कर शान्त मौन हो गया था। सम्राट् बृहस्पतिमित्र ने मन्द गभीर स्वर स पूछा-"खारवेल का दूत कहाँ है ?" ४५२ . प्रसाद वाङ्मय