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करती होऊ, वह नहीं सकती। वह देखो, भिक्षुणिया का सप आ रहा है । मुये जाना होगा । तुमको इस समय के लिए इसे स्वीकार करना हागा।" फिर उसने ध्यान से इन वातो को मुनन वाले ब्रह्मचारी का देख कर नमस्कार किया और कहा-"आय ! क्षमा कीजिए।" ब्रह्मचारी ने धीरे-धीरे आकर अग्निमित्र का हाथ पकड लिया। अभी भी वह पूरी आँख नही खालता था। उसकी आखा से ज्वाला निकल कर बुझ जातो थी। इरावती ने उन भिक्षुणिया के साथ प्रस्थान किया, जा दूर प्रागण म उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। इस घटना का वीत कई महीन हो गय। अग्निमित्र महाकाल-मन्दिर म ब्रह्मचारी के पास रहन लगा । और ब्रह्मचारी दिन-रात पुरानी बठना का बालकर पुस्तका के पढन म और कुछ लिखन म समय वितान लगा। क्वल मायप्रात पूजन के समय गर्भगृह म दिखाई पड़ता। शारदी पूर्णिमा थी। शिप्रा म छाटी-छाटी लहरें उठकर चांदनी की झालर वना रही थी । नागरिको को छोटी-छाटो नावे जल-विहार के लिए स्वच्छन्द घूम रही थी। उधर विहार के उपासथागार म भिक्षु-सप एकर था। और उसी म सटे चाम पर भिक्षुणियां भी अपन विहार स आकर एकत्र हो रही थी। उपोसयागार म भिक्षु-संघ प्रवारणा कर रहा था। और वाहर चक्रम पर भिक्षुणिया का छाटा-सा समूह प्रवारणा के लिए अपनी जार स प्रतिनिधि भेजन का चुनाव कर रहा था । उत्पला विशुणा चुनी गई। उसकी थामणरी नीला बारह वरस की एक निराधया वालिका थी। नोला चाम क एक कान पर पडी पूर्ण चन्द्रादय दख रही थी। उसन सहसा घूमकर कहा "भगिनी इरा ! केसी सुन्दर रात है।" "मत कहा ऐसी वात थामणरी नीला । यह भावना मुख म मन का पंसान वाली है।" पास ही बैठी हुई एक भिक्षुणी न कहा । इरान जैस बव मुना । कुछ प्रत्याभ्यान करन की इच्छा से उसने पूछा--"क्या कहा?" "रात्रि का सौन्दर्य, वाम-भोग के निचे मन को उत्तेजित कर सकता है भगिनी । उसरा वर्णन वजित है।'-भिक्षुणी न रहा। "वाह ! यह कौमुदी-महोत्सव ! और इसकी प्रशसा भी न की जाय यह रात तो नापन की है भगिनी ! तुम लोग अपन दापा का ही गिनती कर रहा हो। नही ! मैं निदाए । इमा चौदनी पी रद मुन अपन जादन बन्दना तो : ४४५