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कुछ-कुछ समझा । कुछ उसे सन्देह हुना । परन्तु वह सम्भलकर बालामव आप ही ठीक हो जायगा, अभी अल्हडपन है । अच्छा फिर पाऊंगा। वीरेन्द्र और मगलदेव उठे, सीढी की ओर चल । गुलनार न झुक्कर मलाम किया, परन्तु उसकी आँखे पतका का पल्ला पसारनर वरुणा की नीय मांग रही थी। मगलदेव न~ चरित्रवान मगलदेव नजान पाए रहम्पपूर्ण सकत किया । गुलेनार हँस पड़ा, दोना नीचे उतर गये। मगल । तुमन ता वह लम्ब हाथ पर निकाल-वहाँ ता आत ही न थे, कहाँ ये हरवते -चोरेन्द्र न रहा। वारन्द्र । तुम मुझे जानन हा परन्तु म मचमुन यहाँ आकर पंम गया । यही ता आश्चर्य की बात है। जाश्चय काहे का, यही ता वाजल की काठरी है। हुआ कर, चना व्याजू परख सो रह । सवेर की ट्रेन परडनी होगी। नही वीन्द्र, न ना कैनिंग काज म नाम लिखा न का निश्चम-मा कर लिया है, कल मैं नहीं चल सकता। मगल न गभीरता म कहा। वीरेन्द्र जैसे आश्चय-चक्ति हो गया। उसने कहा-~मगल, तुम्हारा इसम बाई गूढ उद्देश्य हाँगा । मुझे तुम्हार ऊपर इतना विश्वास है कि में कभी स्वप्न म भी नहीं साच माता कि तुम्हाग पद-स्वतन होगा परन्तु फिर भी मैं पम्पित सिर नीचा रिय मगल न पहा--और मै तुम्हारे विश्वास की परीक्षा करूंगा। तुम तो बचकर निकल आय परन्तु गुलनार को बचाना होगा । वोरेन्द्र में निश्चयपूर्वक रहता है कि यह वही बालिकाह जिसर मम्बन्ध म मै ग्रहण के दिना में तुमय रहता था कि मेर देखते ही र वानिया कुटनी के चगुल में फंस गई और मैं कुछ न कर सका। एसी बहुत-सी अभागिनी इस दश म है। फिर यहाँ-वहाँ तुम देखोगे ? जहाँ-जहाँ दख सगा। मावधान । मगल चुप रहा । वीरेन्द्र जानता था कि मगल बडा हठी है, यदि इस समय मै इस घटना का बहुत प्रधानता न दू, ता सम्भव है कि वह इस कार्य स विरक्त हो जाय, अन्यथा मगल अवश्य वही करेगा, जिससे वह रोका जाय, अतएव वह भी चुप रहा। सामन नांगा दिखाई दिया। उस पर दोना वैठ गये। दूसरे दिन मव को गाडी पर बैठाकर अपने एक आवश्यक पाय का बहाना १६ प्रसाद वाङ्मय