पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४४७

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हाथो खरोदे हैं । राजा साहब मुंह देखते रह गये । हजार-हजार रुपये दाम बढा कर लगा दिया। राजसी ठाट है। एक-स-एक पडित और गवैय उनके साथ है। यह मैना भी ता उन्ही के साथ आई है। लोग कहते है, वह सिद्ध महात्मा है । जिधर आख उठा द, लक्ष्मी बरस पडे । मधुवन को थप्पड-सा लगा। मना और महन्त । तब वह यहा क्या खडा है ? उस बडे-से डेरे के दूसरी ओर वह चला। आस-पास छोटी-छाटी छोलदारियां खडी थी। मधुबन उन्ही में घूमने लगा। वह अपने हृदय को दवाना चाहता था । पर विवश होकर जैसे उस डेरे के आस-पास चक्कर काटने लगा। ____ इतने मे एक दूसरा परिचित कठस्वर सुनाइ पड़ा। हा, चौवे ही तो थ । किसी से कह रहे थे--तहसीलदार साहब 1 महन्तजी से जाकर कहिए कि पूजा का समय हो गया। ठाकुरजी के पास भी आवे । मैना तो कही जा नही रही ___ मरे महन्तजी, यह जितना ही बूढा हाता जा रहा है उतना ही पागल होन लगा है । रुपया बरस रहा है, और कोई राकन वाला नहीं। -तहसीलदार न उत्तर दिया। मधुबन के अग स चिनगारियाँ छूटने लगी। उसके जीवन को विपाक्त करन वाले सब विषैले मच्छर एक जगह । उसके शरार में जैस भूला हुआ बल चैतन्य होन लगा। उसने सोचा-मैं तो ससार क लिए मृतप्राय हूँ हो । फिर प्रेतात्मा की तरह मरे अदृश्य जीवन का क्या उद्देश्य है ? तो एक बार इन सबो को । फिर ऐठनेवाले हृदय पर अधिकार किया। वह प्रकृतिस्थ होकर ध्यान से उसकी बातो को सुनने लगा। अभी अफसर लोग डेरे मे है । महन्तजी नहीं आ सक्ते । –एक नौकर ने आकर चौबे से कहा। तहसीलदार ने कहा- महाराज | क्यो आप घबराते है, कुछ काम तो करना नही है । इसके साथ हम लोगो के रहने का यह तात्पर्य तो है नही कि यह सुधारा जाय । खाओ-पीओ, मौज लो । देखते नही, मैं चला था धामपुर के जमीदार को सुधारने, क्या दशा हुई । आज वही मेम सर्वस्व की स्वामिनी है। और में निकाल बाहर किया गया। गांव में किसी की दाल नही गलती । किसान लोगो के पास लम्बी-चौडी खेती हो गई। वे अब भला कानूनगो और तहसीलदारो की बात क्या तितली. ४२३