पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४२०

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वाला गाना आरम्भ कर चुके है, और वीरू वाबू उनके नायक का तरह गेरुआ कपडा सिर से बाँधे वीच म खडे है । मधुबन जैस स्वप्न देख रहा था । उसका सम्मिलित गान बडा आकर्षक था। वे धीरे-धीरे बाहर हो गये। दो लडका के हाथ मे गेरुए कपडे का झोला था। एक गले म हारमानियम डाले था वाको गा रहे थे । भिखमगा का यह विचित्र दल अपने नित्य कर्म के लिए जव वाहर चला गया तव मधुवन अंगडाई ले उठ बैठा। आज सवेरे स बदली थी। पानी बरसन का रग था। रामदीन सरसो का तेल लेकर मधुबन क शरीर म लगाने लगा। वह इस अनायास की अमीरी का आँख मूदकर आनन्द ले रहा था । वह जैसे एक नये ससार म आश्चर्य के साथ प्रवेश करने का उपक्रम कर रहा था। उसके जीवन की स्वचेतना-जो उसे अभी तक प्राय समझ-बूझकर चलने के लिए सकत किया करती थी-इस आकस्मिक घटना से अपना स्थान छोड चुकी थी। जीवन के आदर्शवाद मस्तिष्क से निकलने की चिन्ता म थे । दोपहर होन आया, वह आलसी की तरह बैठा रहा । ___ वीरू बाबू का दल लौट आया। झोली म चावल और पैसे थे, जो अलग कर लिये गये । बोरू पैसा का लकर साग-भाजी लेने चला गया । और लोग भात बनाने में जुट गये । बडा सा चूल्हा दालान म जलन लगा और चावल धोते हुए ननीगोपाल ने कहा-बोरू आज भी मछली लाता है कि नही । भाई, आज तीन दिन हो गये साग खाकर हारमोनियम गल में डाले गली-गली नही घूमा जा सकता । क्या रे सुरेन । सुरस हँस पडा । ननी फिर बौखला उठा-पाजी कही का, तुझसे कहा था न मैंन कि दा-चार आन उनम से टरका देना । और बीरू बाबू की घुडकी कौन सहता? मर बोरू और मुरन, मैं ता जाता हूँ अड्डे पर । दखू एकाध चिलम, चरस । बीरू क प्रवेश करते ही सब वाद-विवाद बन्द हो गया था। उसन तरकारी की गठरी रखते हुए कहा आज भी मछली की ब्यात नही लगा। मैं तो विना मछली के आज खा नही सकता-कहते हुए मधुबन न एक रुपया अपनी काठरी म से फक दिया। वह निर्विकार मन से इन बातो को सुनन का आनन्द ले रहा था । ननो दौड पडा-रुपये की और । उसने कहा ३६६ प्रसाद बाङ्मय