पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३८७

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कहा-वहीं पर जल पोकर तुम बैठो। राजा के जान पर मैं तुमको बुला लूंगा। ___ मधुवन ता इतना कहकर सहक के वृक्षा की अंधेरी छाया म छिप गया, और माधो जल पीने चला गया ।-आज उसको दिन भर कुछ खान के लिए नहीं मिला था। उधर राजो चुपचाप महन्त जी के सामने खडी रही। उसके मन मे भीषण क्रोध उबल रहा था; किन्तु महन्त जी को भी न जाने क्या हो गया था कि उसे जाने के लिए तव तक नही कहा था । राजो ने पूछा-महाराज। यह सब किसलिए । किसलिए? यह सब ? -चौककर महन्त जी बोले। ठाकुरजी के घर म दुखियो और दीनो को आश्रय न मिले ता फिर क्या यह सब ढाग नही ? यह दरिद्ध किसान क्या थोडी-सी भी सहानुभूति देवता के घर से भीख मे नही पा सकता था? हम लोग गृहस्थ है, अपन दिन-रात के लिए जुटाकर रखे तो ठोक भी है। अनेक पाप, अपराध, छल-छन्द करके जो कुछ पेट काटकर देवता के लिए दिया जाता है, क्या वह भी ऐसे ही कामो के लिए है ? मन मे दया नही, सूखा-सा... राजकुमारी तुम्हारा ही नाम है न? मैं सुन चुका हूँ कि तुम कसी माया जानती हो । अभी तुम्हारे ही लिए वह चौवे विचारा पिट गया है। उसको मैं न रखता तो वह मर जाता । क्या यह दया नही है ? तुमका भी, यहा रहो तो सब कुछ मिल सकता है । ठाकुरजी का प्रसाद खाओ, मौज से पडी रह सकती हो । सूखा-रूखा नही! फिर कुछ रुसकर महन्त न एक निर्लज्ज सकेत किया । राजकुमारी उसे जहर क चूंट की तरह पी गई। उसने कहा-तो क्या चौबे यही हैं। हाँ, यहीं ता है, उसकी यह दशा तुम्ही ने को है। भला उस पर तुमका कुछ दया नहीं आई। दूसरे की दया सब लोग खोजते है और स्वय करनी पडे तो कान पर हाथ रख लेते हैं । थानदार उसको खोजते हुए अभी आये थे । गवाही देने के लिए कहते थे। राजकुमारी मन-ही-मन कांप उठी। उसने एक बार उस बोती हुई घटना का स्मरण करके अपने को सम्पूर्ण अपराधिनी बना लिया । क्षण भर में उसके मामन भविष्य का भीषण चित्र खिंच गया। परन्तु उसके पास कोई उपाय न था । इस समय उसको चाहिए रुपया, जिससे मघवन के ऊपर आई हुई विपत्ति टले । मधुवन छिपा फिर रहा था, पुलिस उसको खोज रही थी। रुपया हो एक तितली : ३६१