पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३८०

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में उसे युद्ध करना है । वह घडी भर मन बहलाने के लिए जिस तरह चाह रह सकता है। उसव आचरण में, कर्म म, नदी की धारा की तरह प्रवाह होना चाहिए । तालाव के बंधे पानी-सा उसके जीवन का जल मडने और सूखने के लिए होगा तो वह भी जड और स्पन्दन-विहीन हागा । ___अभी-अभी रामजस क्या कह गया है ? उसका हृदय कितना स्वतत्र और उत्साहपूर्ण है । मैं जैस इस छोटी-सी गृहस्थी के वधन म बंधा हुआ, बैल की तरह अपने सूखे चारे को चबाकर मन्तुष्ट रहने में अपने को धन्य समझ रहा हूँ। नही, अब मैं इस तरह नहीं रह सकता । सचमुच मरी कायरता थी । चौवे का उसी दिन मुझे इस तरह छोड देना नही चाहता था। मैं डर गया था। हाँ अभाव । झगडे के लिए शक्ति, सपत्ति और साहाय्य भी तो चाहिए । यदि यही होता । तब मैं उसे सग्रह करूंगा । पाजी बनूंगा सब करते क्या हैं । ससार में चारा ओर दुष्टता का साम्राज्य है। मैं अपनी निर्बलता के कारण ही लूट म सम्मिलित नही हो सकता । मर सामने ही वह मेरे घर में घुसना चाहता था। मेरी दरिद्रता को वह जानता है । और राजो । ओह । मेरा धर्म झूठा है। मैं क्या किसी के सामने सिर उठा सकता हूँ। तब रामजस सत्य कहता है । ससार पाजी है, तो हम अकेने महात्मा बनकर मर जायेंगे। मधुबन घर की ओर मुडा। वह धीरे-धीरे अपनी झापड़ी के सामने आकर खडा हुआ। तितली उसकी ओर मुंह किये एक फटा कपडा सी रही थी । भीतर राजो रसोई-घर मे से बोली-बहू, सरसो का तेल नही है । ऐसे गृहस्थी चलती है, आज ही आटा भी पिस जाना चाहिए। ____जीजी, देखो मलिया ले आती है कि नही । उससे तो मैंने कह दिया था कि आज जो दाम मटर का मिले उससे तेल लेते आना। और आटे के लिए क्या किया? जौ, चना और गेहूँ एक म मिलाकर पिसवा लो। जब बाबू साहब को घर को कुछ चिन्ता नही तव तो जो होगा घर मे वही न खायगे ? कल का बोझ जो जायगा उसम अधिक दाम मिलेगा करजा सब विनवा चुकी हूँ । बनिये ने माँगा भी है । गेहूँ कल मंगवा लूंगी। उनकी बात क्या पूछती हो । तुम्ही तो मुझसे चिढकर उनके लिए मैना को खोज लाई हो, जीजी |-- कहती हुई तितली ने हंसी को बिखराते हुए ब्यग्य किया। भाड में गई मैना । बहू, मुझे यह हंसी अच्छी नही लगती । आ तो आज तेरी चोटी बांध दूं। मधुबन यह बाते सुनकर धीरे से उल्टे पाँव लौटकर बनजरिया के बाहर ३५४ प्रसाद वाङ्मय