पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३७६

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रही है । तितली का देखत ही उसस न रहा गया। उसका हाथ पकडकर वह अपनी काठरी म ले जाते हुए वाली—मैना ! आज मरे मधुबन को बहू अपनी सुसराल म आई है । तुम्ही कुछ मगल गा दो। धेचारो मुझस रूठकर यहाँ आती ही न थी। मधुबन अवाक् था । मना समझ गयी। उसन गान के लिए मुंह वाला ही था कि मधुवन की तीखी दृष्टि उस पर पड़ी। पर वह कब मानने वाली । उसन कहा-बाबूजी, जाइए, मुंह धो आइए । मैं आपसे डरने वाली नही । ऐसी सोनसी बहू देखकर गाने का मन न करे, वह कोई दूसरी होगी। भला मुझे यह अवसर तो मिला। मधुवन ने तितली स पूजा भी नहीं कि तुम कैस यहाँ आई हा । उसन बाहर को राह ली । तितली इस आकस्मिक मल स चकित-सी हो रही थी। उस दिन राजो के घर धूम-धाम स खाने-पीने का प्रवन्ध हुआ । मधुबन जव खाने बैठा ता मना गाने लगी । तितली की आँखो म सन्दह की छाया न थी। राजो के मुंह पर स्पष्टता का आलाक था। और मधुवन । वह कभी शेरकाट को देखता, कभी तितली का। ___ मना रामकलेवा क चुन हुए गीत गा रहा थी । मलिया अपन विलक्षण स्वर __में उसका साथ दे रही थी । मधुबन आज न जाने क्यो बहुत प्रसन हो रहा था । प्रसाद वाङ्मय