पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३७३

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देव ! मुझे सब तरह से मत लूटो। मेरा मानसिक पतन हो चुका है । में किसी ओर की न रही, तो तुम्हारी भी न हो सकूँगी । मुझे घर पहुंचा दो। सुखदेव अनुनय करने लगा। रात और भी भीगने लगी। ज्तो-ज्यो विलम्ब हो रहा था, राजकुमारी का मन खीझने लगा। उसने डॉटकर कहा-चलो घर पर, मैं यहां नही खड़ी रह सकती। विवश हो कर दोनो ही शेरकोट की ओर चले । उधर बारात मे नाच-गाना, खाना-पीना चल रहा था। सब लोग जव आनन्द-विनोद मे मस्त हो रहे थे, तब एक भयानक दुर्घटना हुई । एक हाथी, जो मस्त हो रहा था, अपने पीलवान को पटककर चिंघाडने लगा । उधर साटेबरदार, बरछी वाले दौडे, पर चॅदोवे के नीचे तो भगदड मच गई । हाथी सचमुच उधर ही आ रहा था। मधुवन भी इसी गडबडी में अभी खडा होकर कुछ सोच हो रहा था, कि उसने देखा, मैना अकेली किंकर्तव्यविमूढ-सी हाथी के सूंड की पहुंच हो के भीतर खडी थी। बिजली की तरह मधुवन झपटा। मैना को गोद में उठाकर दैत्य की तरह सरपट भागने लगा । मैना वेसुध थी। उपद्रव की सीमा से दूर निकल आने पर मधुबन को भी चैतन्य हुआ। उसने देखा, सामने शेरकोट है । आज कितने दिनो पर वह अपने घर को ओर आया था । अब उसे अपनी विचित्र परिस्थिति का ज्ञान हुआ। वह मैना को बचा ले आया, पर इस रात मे उसे रखे कहाँ । उसने मन को समझाते हुए कहा-मै अपना कर्तव्य कर रहा हूँ। इस समय राजो को बुलाकर इस मूच्छित स्त्री को उसका रक्षा में छोड़ दूं। फिर सवेरे देखा जायगा । ____ मैना मूच्छित थी। उसे लिए हुए धीरे-धीरे वह शेरकोट के खंडहर मे घुसा । अभी वह किवाड के पास नहीं पहुँचा था कि उसे सुखदेव का स्वर सुनाई पडाखोल दो राजो ! मैं दो बात करके चला जाऊँगा । तुमको मेरी सौगन्ध । मधुबन के चारो ओर चिनगारियाँ नाचने लगी। उसने मैना को धीरे से दालान की टूटी चौकी पर सुलाकर सुखदेव को ललकारा-क्यो चौबे की दुम । यह क्या ? सुखदेव ने घूमकर कहा-मधुबन ! बे, ते मत करो! साथ ही मधुबन के बलवान हाथ का भरपूर थप्पड मुंह पर पड़ा-नीच कही का। रात को दूसरो के घर की कुडिया खटखटाता है और धन्नासेठी भी बधारता है । पाजी! ____ अभी सुखदेव सम्हल भी नही पाया था कि दनादन लात-घूसे पड़ने लगे। सुखदेव चिल्लाने लगा । मैना सचेत होकर यह व्यापार देखने लगी। उधर से तितली: ३४५