पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३५६

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मैं तो इसे ऐसा ही समझता हूँ। तो फिर आ जा न मेरे यार । तू भी यह दिल्लगी देख । रामसिंह के इतना कहते हो मधुवन सचमुच कुरता उतार, धातो फककर अखाड़े में कूद पड़ा। मुन्दरिया उस देहाती युवक के शरीर को सस्पृह देखने लगी। गांव के लोगो में उत्साह-सा फैल गया । सब लोग उत्सुकता से देखने लगे । और तहसीलदार तो अपनी गोल-गाल आखा म प्रसनता छिपा ही न सकता था। उसने मन में सोचा आज वच्चू की मस्ती उतर जायगी। रामसिंह और मधुवन म पैंतरे, दांव-पेच और निकस-पैठ इतनी विचित्रता से होने लगी कि लागो के मुंह से अनायास ही 'वाह-वाह' निकल पडता। रामसिंह मधुबन को नीचे ले आया। वह घिस्सा देकर चित करना ही चाहता था कि मधुबन ने उसका हाथ दबाकर ऐसा धड उढाया कि वह रामसिंह की छाती पर बैठ गया। हल्ला मच गया। देहातियो ने उछलकर मधुवन' को कधे पर बिठा लिया। श्यामलाल का मुंह तो उतर गया, पर उन्होंने अपनी उँगली से अंगूठी निकालकर, मधुवन को देने के लिए बढ़ाई। मधुबन ने कहा—मै इनाम क्या करूंगा-मेरा तो यह व्यवसाय नही है । आप लोगा की कृपा ही वहुत है। श्यामलाल कट गये। उन्हे हताश होते देखकर एक वेश्या ने उठकर कहामधुबन वावू | आपने उचित ही किया। बाबूजी तो हम लोगो के घर आये है, इनका सत्कार तो हमी लोगो को करना चाहिए। बड़े भाग्य से इस देहात म आ गये हैं ना ____श्यामलाल जब उसकी चचलता पर हँस रहे थे, तब उस युवती मैना न धीरे से अपन हाथ का बौर मधुबन की ओर बढाया, और सचमुच मधुबन न उस ले लिया। यही उसका विजय-चिह्न था। तहसीलदार जल उठा । वह झुंझला उठा था, कि एक देहाती युवक वावू साहब को प्रसन्न करने के लिए क्या नही पटका गया। उसे अपने प्रबन्ध की यह श्रुटि बहुत खली। छावनी के आगन म भीड वढ रही थी। उसने कडककर कहा-अब चुपचाप सब लोग बैठ जाय । कुश्ती हो चुकी । कुछ गाना-बजाना भी होगा। • श्यामलाल का यह अच्छा तो नही लगता था, क्योकि उनका पहलवान पिट गया था, पर शिष्टाचार और जनसमूह के दबाव से वह बैठे रहे । अनवरी बगल म बैठी हुई उन पर शासन कर रही थी। माधुरी भीतर चिक म उदासभाव से ३२८ प्रसाद वाङ्मय