पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३३४

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नही लगा। वह भी कहने लगी-मैं संस्कृत पढ़गी, पूजा-पाठ करूंगी। कुंवर साहब । मुझे हिन्दू वनाइये न। -किन्तु उसमे इतनी वनावट थी कि मन मे घृणा के भाव उठने लगे। किन्तु मेरा पाखण्ड-पूर्ण मन...कितने चक्कर काटता शैला--सामने घुसती हुई चली जाने वाली सरल और साहसभरी युवती। फिर वह तितली-सी ग्रामीण बालिका क्यो वनने की चेष्टा कर रही है ? क्या मेरी दृष्टि मे उसका यह वास्तविक आकर्पण क्षीण नही हो जायगा ? वह तितली बनकर मेरे हृदय मे शैला नहीं बनी रहेगी। तब तो उस दिन तितली को ही जैसा मैंने देखा, वह कम मुन्दर न थी। ___ अरे, अरे मैं क्या चुनाव कर रहा हूँ। मुझे कौन-सी स्त्री चाहिए 1 -हो, प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नही, वह तो शिशु-से सरल हृदयो की वस्तु है । अधिकतर मनुष्य चुनाव ही करता है, यदि परिस्थिति वैसी हो। मैं स्वीकार करता हूँ कि ससार की कुटिलता मुझे अपना साथी बना रही है। वह मित्र-भाव तो शैला का साथ न छोडेगा। किन्तु मेरी निष्कपट भावना . जैसे मुझसे खो गई है। मुझे सदेह होने लगा है कि गैला को वैसा ही प्यार करता है, या नही । मनुष्य का हृदय, शोतकाल की उस नदी के समान जव हो जाता है - जिसम ऊपर का कुछ जल वरफ की कठोरता धारण कर लेता है, तब उसके गहन तल में प्रवेश करने का कोई उपाय नही । ऊपर-ऊपर भले ही वह पार की जा सकती है । आज प्रवञ्चनाओ को वरफ को माटी चादर मरे हृदय पर ओढा दी गई है। मेरे भीतर का तरम जल वेकार हो गया है, किसी को प्यास नही बुझा सकता । कितनी विवशता है । शैला न डायरी रख दी। इन्द्रदेव आ गये, तब भी वह आँख मूंद कर बैठी रही। इन्द्रदेव ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा-शेला? अरे, कब आ गये ? मै कितनी देर से बैठी हूँ। मैं चला गया था मिस्टर वाट्सन से मिलन । कोआपरेटिव बैंक के सम्बन्ध ३ मे और चकबन्दी के लिए वह आये है । कल ही तो तुम्हारा औषधालय खुलेगा। इस उत्सव में उनका आ जाना अच्छा हुआ। तुम्हारे अगल कामा म सहायता मिलेगी। हाँ, पर मै एक बात तुमस पूछने आई हूँ। वह क्या? कल मैं बावा रामनाथ से हिन्दू-धर्म की दीक्षा लूंगी। ३०६. प्रसाद वाङ्मय