पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३१९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

आज यो ही मुझे कुछ बताइए । पूछो। नी सचाई है। इसके है कि तुम्हारे देश बागका महत्त्व है । हम लोगो के यहाँ जीवन को युद्ध मानते हैं, इसमे कितनी सचाई है । इसके विरुद्ध भारत में उदासीनता और त्याग का महत्त्व है ? यह ठीक है कि तुम्हारे देश के लोगों ने जीवन को नही, किन्तु स्थल और आकाश को भी लडने का क्षेत्र बना दिया है। जीवन को युद्ध मान लेने का यह अनिवार्य फल है । जहाँ स्वार्थ के अस्तित्व के लिए युद्ध होगा, वहाँ तो यह होना ही चाहिए। किन्तु युद्ध का जीवन मे कुछ भाग तो अवश्य ही है। भारतीय जनता म भी उसका अभाव नही। पर यह दूसरे प्रकार का है । उसमे अपनी आत्मा के शत्रु आसुर भावो से युद्ध की शिक्षा है। प्राचीन ऋषियो ने बतलाया है कि भीतर जो काम का और जीवन का युद्ध चलता है, उसम जीवन को विजयी बनाओ। किन्तु, मैं तो ऐसा समझतो हूँ कि आपक वेदान्त मे जो जगत् को मिथ्या और भ्रम मान लेने का सिद्धान्त है, वही यहाँ के मनुष्या को उदासीन बनाता है । ससार को असत समझने वाला मनुष्य कैसे किसी काम को विश्वासपूर्वक कर सकता है। ___मैं कहता हूँ कि वह वेदान्त पिछले काल का साम्प्रदायिक वेदान्त है, जा तर्कों के आधार पर अन्य दार्शनिक को परास्त करने के लिए बना । सच्चा वेदान्त व्यावहारिक है । वह जीवन-समुद्र आत्मा को उसकी सम्पूर्ण विभूतियो के साथ समझता है। भारतीय आत्मवाद के मूल म व्यक्तिवाद है, किन्तु उसका रहस्य है समाजवाद की रूढियो से व्यक्ति की स्वतत्रता की रक्षा करना । और, व्यक्ति की स्वतत्रता का अर्थ है व्यक्ति समता की प्रतिष्ठा, जिसम समझौता अनिवार्य है । युद्ध का परिणाम मृत्यु है। जीवन से युद्ध का क्या सम्बन्ध, युद्ध तो विच्छेद है और जीवन म शुद्ध सहयोग है। __अच्छा, तो मैं मान लेती हूँ, परन्तु मुनो, तुम्हारे ईसा के जीवन में और उनकी मृत्यु में इसी भारतीय सन्देश की क्षीण प्रतिध्वनि है। आपन ईसा की जीवनी भी पढ़ी है? ____ क्या नहो । किन्तु तुम लोगो के इतिहास मे तो उसका कोई सूक्ष्म निदर्शन नहीं मिलता, जिसक लिए ईसा ने प्राण दिये थे। आज सब लोग यही कहते हैं कि ईसाई धर्म सेमिटिक है, किन्तु तुम जानती हो कि यह सेमेटिक धर्म क्यो तितली. २६१