पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३१६

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कुछ देर तक राजकुमारी सिर नीचा कर सोचती रही । फिर उसने कहाअच्छा, किसी दूसरे दिन इसका उत्तर दूंगी। उस दिन चौवे बिदा हुए। किन्तु राजकुमारी के मन में भयानक हलचल हुई । सयम के प्रौढ भाव की प्राचीर के भीतर जिस चारित्र्य की रक्षा हुई थी, आज वह सन्धि खोजने लगा था। मानव-हृदय की वह दुर्बलता कही जाती है । किन्तु जिस प्रकार चिररोगी स्वास्थ्य को सम्भावना से प्रेरित होकर पलंग के नीचे पैर रखकर अपनी शक्ति की परीक्षा लेता है, ठीक उसी तरह तो राजकुमारी के मन में कुतूहल हुआ था- अपनी शक्ति को जाचने का । वह किसी अश तक सफल भी हुई, और उसी सफलता न और भी चाट वढा दी। राजकुमारी परखने लगी थी अपना-स्त्री का अवलम्ब, जिसके सबसे वडे उपकरण हैं यौवन और सौन्दर्य । आत्मगौरव, चारित्र्य और पवित्रता तक सबकी दृष्टि तो नही पहुँचती। अपनी सासारिक विभूति और सम्पत्ति को सम्हालने की आवश्यकता रखने वाी किस प्राणी का, चिन्ता नही होती ? शस्त्र कुठित हो जाते है, तब उन पर शान चढ़ाना पडता है। किन्तु राजकुमारी के सब अस्त्र निकम्मे नही थे । उनकी और परीक्षा लेने की लालसा उसके मन मे बढ़ी। उधर हृदय में एक सन्तोप भी उत्पन्न हो गया था । वह सोचन लगी थी कि मधुबन की गृहस्थी का वोझ उसी पर है। उस मधुवन की कल्याण-कामना के साथ उसकी व्यावहारिकता भी देखनी चाहिए । शेरकोट कैसे बचेगा, और तितली से ब्याह करके दरिद्र मधुबन कैसे सुखी हो सकेगा? यदि तितली इन्द्रदेव की रानी हो जाती और राजकुमारी के प्रयत्ल से, तो वह कितना वह भविष्य की कल्पना से क्षण-भर 4 लिए पागल हा उठी । सब बातो मे सुखदेव की सुखद स्मृति उसकी कल्पनाओ को और भी सुन्दर बनाने लगी। ___ बुढिया ने बहुत देर तक प्रतीक्षा की, पर जब राजकुमारी के उठने के, या रसोई-घर मे आने के, उसने कोई लक्षण नही देखे तो उसे भी लाचार होकर वहाँ से टल जाना पड़ा। राजकुमारी ने अनुभूति भरी आँखो स अपनी अभाव को गृहस्थी को देखा और विरक्ति से वही चटाई बिछाकर लेट गई। धीरे-धीरे दिन ढलने लगा। पश्चिम म लाली दौडी, किन्तु राजकुमारी आलस भरी भावना म दुबकी ले रही थी। उसने एक बार अंगडाई लेकर करारो म गगा की अधखुली धारा को देखा । वह धीरे धीरे वह रही थी। स्वप्न दखने की इच्छा से उसने आंखे बन्द की। मधुबन आया । उसने आज राजकुमारी को इस नई अवस्था में देखा । वह २८८ . प्रसाद वाङ्मय