पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३१२

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में डाले हुए था। वह सोच रही थी—क्या वही सत्य था? इतना दिन जो मैंन किया, वह भ्रम था । मधुवत जब ब्याह कर लगा, तव यहाँ मेरा क्या काम रह जायगा ? गृहस्थी ! उसे चलान के लिए तो तितली आ ही जायगी । अहा । तितली कितनी मुन्दर है | मधुवन प्रसन्न होगा। और मैं ? अच्छा, तब तीर्थ करन चली जाऊँगी। उह | रुपया चाहिए उसके लिए---कहाँ से आवेगा ? अरे जब घूमना ही है, तो क्या रुपये की कमी रह जायगी? रुपया लेकर करूंगी ही क्या ? भीख मांग कर या परदश म मजूरी करके पेट पालूंगी। परन्तु आज इतने दिना पर चौथे। ____ उसके हृदय मे एक अनुभूति हुई जिस स्वय स्पष्ट न समझ सकी । एक विकट हलचल हाने लगी । वह जैसे उन चपल लहरा म झूमन लगी । रामदीन को नानी ने कहा-चलो मालकिन, अभी रसाई का सारा काम पडा है, मधुबन बाबू आते होगे। ___राजकुमारी जल के बाहर खीझ से भरी निकली । आज उसके प्रौढ वय म भी व्यय-विहीन पवित्र यौवन चचल हो उठा था। चौबे ने उससे फिर मिलने क लिए कहा था । वह आकर लौट न जाय । वह जल स निकलते ही घर पहुँचने के लिए व्यग्र हा उठी। २८४ प्रसाद वाङ्मय