पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३११

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काली रजनी-सी उनीदी आखे जैसे सदैव कोई गम्भीर स्वप्न देखती रहती है। लम्बा छरहरा अग, गोरी-पतली उंगलियां, सहज उनत ललाट, कुछ खिची हुई भौहे और छोटा-सा पतले-पतले अधरावाला मुख-साधारण कृपक-बालिका से कुछ अलग अपनी सत्ता बता रहे थे । कानो के ऊपर से ही चूंघट था, जिससे लट निकली पडती थी। उसकी चौडी किनारे की धोती का चम्पई रग उसके शरीर में घुला जा रहा था। वह सन्ध्या के निरभ्र गगन म विकसित हाने वालीअपने ही मधुर आलोक से तुष्ट-एक छोटी-सी तारिका थी। ___ राजकुमारी, स्त्री की दृष्टि से, उसे परखन लगी, और रामनाथ का प्रस्ताव मन-ही-मन दुहराने लगी। शैला ने कहा-~-अच्छा, तुम कही आती-जातो नही हा बहन । कहाँ जाऊँ? तो मैं ही तुम्हारे यहाँ कभी-कभी आया करूँगा । अकेले घर मे बैठे-बैठे कैसे तुम्हारा मन लगता है ? ___बैठना ही तो नही है ! घर का काम कौन करता है । इसी म दिन बीतता जा रहा है । देखिए, यह तितली पहले मधुबन के साथ कभी-कभी आ जाती थी, खेलती थी। अब तो सयानी हो गई है। क्या री, अभी ता ब्याह भा नही हुआ, तू इतनी लजाती क्यो है ?-घूमकर जब उसन तितली की ओर देखकर यह बात कही, तो उसके मुख पर एक सहज गम्भीर मुस्कान लज्जा क बादल म विजली-सी-चमक उठी। __ शैला न उसको ठोडी पकडकर कहा-यह तो अब यही आकर रहना चाहती है न, तुम इसको बुलाती नही हो, इसीलिए रूठी हुई है । तितली को अपनी लज्जा प्रकट करने के लिए उठ जाना पड़ा। उसने कहा-क्यो नही आऊंगी। बाबा रामनाथ ऊपर आ गये थे। उन्हाने कहा-अच्छा, तो अब चलना चाहिए। फिर राजकुमारी की ओर देखकर कहा--तो बेटी, फिर किसी दिन बाऊंगा। राजकुमारी ने नमस्कार किया। वह नहाने के लिए नीचे उतरने लगी, और शैला तितली के साथ रामनाथ का अनुसरण करने लगी। गगा के शोतल जल म राजकुमारी देर तक नहाती रही, और साचती थी अपन जीवन को अतीत घटनाएं। तितली के ब्याह के प्रसग स और चौबे के आने-जाने स नई होकर वे उसरी आँखा क सामन अपना चित्र उन लहरों म सोच रही थी । मधुबन की गृहस्थी का नगा उस अब तक विस्मृति के अन्धकार तितली २३