पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२९७

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गई । वह चुपचाप एक पत्थर पर बैठ गया। शैला भी भीतर न जाकर झील की ओर चली गई। पत्यरा को पुरानी चौकियां अभी वहां पड़ी थी। उन्ही में से एक पर बैठकर वह सूखती हुई झील को देखने लगी । देखते-देखते उसके मन में विपाद और करुणा का भाव जागृत होकर उसे उदास वनान लगा । गला का दृढ विश्वास हो गया कि जिस पत्थर पर वह बैठी है, उसी पर उसकी माता जेन आवर वैठती थी। अज्ञात अतीत को जानने की भावना उसे अन्धकार म पूर्व-परिचिता के समीप ले जाने का प्रयत्न करने लगी। जीवन में यह विचित्र शृखला है। जिस दिन से उस वार्टली और जेन का सम्बन्ध इस भूमि स विदित हुआ, उसी दिन से उसकी मानस-लहरियो में हलचल हुई। पहल उसके हृदय ने तर्क-वितर्क किया। फिर वाल्यकाल की सुनी हुई वाता न उसे विश्वास दिलाया कि उसकी माता जेन ने अपन जीवन क सुखी दिना को यही बिताया है। अवश्य उसकी माता भारत के एक नील-व्यवसायी की कन्या थी। फिर जब उसके सम्बन्ध म यहाँ प्रमाण भी मिलता है, तब उसे सन्दह करन का कोई कारण नही । अज्ञात नियति की प्रेरणा उस किस मून स यहाँ खीच लाई है यही उसके हृदय का प्रश्न था । वह सोचने लगो, यहाँ पर उसकी माता की कितनी सुखद स्मृतियाँ शून्य म विलीन हो गई। आह । उसके दु ख स भरे वे अन्तिम दिन कितने प्यार स इन स्थलो को स्मरण करते रह होंगे। इसी झील में छोटी-सी नाव पर उस अतीतकाल म वह कितनी बार घूमवर इसी कोठी म लौटकर चली आई होगी । उस कल्पना की एकाग्रता ने माता के पैरो की चाप तक सुनवा दो। उसे मानूम हुआ कि उस खंडहर की मीढिया पर सचमुच कोई चढ रहा है । वह धूमकर खड़ी हो गई किन्तु रामजस और मधुवन के अतिरिक्त कोई नही दिखाई दिया । वह फिर बैठ गई और दोनो हाथा से अपना मुंह ढंककर सिसकन लगी। माता का प्यार उसकी स्मृति मात्र से ही उस सहलाने लगा । उस भयाबन खंडहर म माता का स्नह जैस विखर रहा था। वह जीवन म पहिली बार इस अनुभूति से परिचित हुइ । उस विश्वास हो गया कि यही उसका जन्म-जन्म का आवास है आज तक वह जा कुछ दख सकी थी, वह सब विदश की यात्रा थी । आखो के सामने दो घड़ी के मनारजन करने वाल दृश्य, सो भी उसम कटुता की मात्रा ही अधिक थी, जा कष्ट झेलन वाली सहनशील मनोवृत्ति के निदर्शन थे । आज उस वास्तविक विश्राम मिला । वह और भी बैठती किन्तु मधुवन न कहा-रामजस, तुमको जाडा लग रहा है क्या? नही भइया, यही सोचता हूँ कि कही स एक चिलम पागल, यहाँ स गाव में जाकर लाटने म घटा लग जायंगे । तितली २६६