पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२९५

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क्या अभी जोती हैं मम साहब ? बुड्ढे न बडे उल्लास से पूछा । उसके हाय का हुक्का छूटते-छूटते बचा। नहीं, वह तो मर गई । उनकी एक लड़की है । अहा । कितनी बडी होगी वह । मैं एक बार देख ता पाता? अच्छा, जव समय आवेगा तो तुम देख लोगे । पहले यह तो बताआ कि मैं नाल-काठी दखना चाहती हूँ, इस समय कोई वहा मरे साथ चल सकता है ? सब किसान एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। भुतही कोठी मे इस रात को कौन जायगा । महंगू ने कहा-मैं बूढ़ा हूँ, रात को सूक्षता कम है। मधुबन ने कहा-~-मेम साहब, मैं चल सकता है। साहस पाकर लड़के रामजस न कहा~मैं भी चलूगा भइया । मधुवन ने कहा- तुम्हारी इच्छा। कधे पर अपनी लाठी रख, मधुवन आगे, उसक पीछ शेला और तब रामजस, तीना उस चादनी मे पगडडी से चलन लगे । चुपचाप कुछ दूर निकल जान पर शैला न पूछा-मधुवन, खती स तुम्हारा काम चल जाता है ? तुम्हारे घर पर और कौन है ? मम साहब ! काम तो किसी तरह चलता ही है । दो-तीन बोधे की घेती ही क्या? बहन है वेचारा, न जाने कैसे सब जुटा लती है । आज-कल ता नही, हाँ जव मटर हो जायगी, गांवो में कोल्हू चलने ही लगे हैं तब फिर कोई विन्ता नही। तुम शिकार नहीं करते? कभी-कभी मछली पर बसी डान दता हूँ। और कौन शिकार करूं? बहन तुम्हारी यही रहती हैं ? हाँ मेम साहब, उसी ने मुझे पाला है-~कहत हुए मधुवन न कहा-दखिए, यह गड्ढा है। सम्भल कर आए। अब हम लोग कच्ची सडक पर आ गये अच्छा मधुबन । तुमने यह तो कहा ही नही कि तितली कहाँ है, दिवाई नही पहो । उस दिन जब रामनाथ उसको लिवा ले गया, तब स तो उसका पता न लगा । उसका क्या हाल है। सब कठोर हैं, निर्दय है-मन-ही-मन कहत हुए अन्यमनस्क भाव से मधुवन न अपना कन्धा हिला दिया? क्या है मधुबन ! कहते क्यो नही । उसी दिन से वह बेचारी पडी है । उधर सुना है कि तहसीलदार ने वेदधला तितली २६७