पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२९२

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के बाहर ही एक वृक्ष के पिना पत्तावालो डाला के नीचे एक व्यक्ति पड़ा हुआ अपना हाथ मुंह ता ल जाता ह बार उसे चाटकर हटा लेता है पास ही एक छाटा-सा जीव और भी निस्तब्ध पडा है । म दोडकर अपन लोटे म दूध मोल ल आया। उसके गल म धीर-धीर टपकान लगा। वह आँख खालकर पास ही पड हुए शिशु को दखन लगा । शिशु की जार भरा ध्यान नहीं गया था । मैं उस दूध पिलान लगा। ___ कहकर बुड्ढा रामनाथ एक बार ठहर गया। उसन चारा आर दखकर अपनी ऑखा को उस खभे की आड़ म ठहरा दिया, जहाँ तितली बैठी थी। शला रूमाल स जपना आखे पाछ रही थी, और सुनन वाली जनता चुपचाप स्तब्ध थी। बुड्ढे ने फिर कहना आरम्भ किया-आप लोगा का कष्ट होता है । दुख और दर्द की कहानी सुनाकर मैने अवश्य आप लागा का समय नष्ट किया । किन्तु करता क्या । अच्छा, जाने दाजिए, मै अव बहुत सक्षेप म कहता हूं-- हाँ, ता वह व्यक्ति थ देवनन्दन जिनकी समस्त भू-सम्पत्ति नीलाम हा गयो। धूर-चूर विक गयी । दा सन्ताना का शरीरान्त हा गया। तब उस बची हुई कन्या का लेवर स्त्री के साथ वह परदश म भीख मांगने चले थ। उस अभागे को नहीं मानूम था कि वह किधर जा रहा था। उस समय अकाल था । कौन भीख दता ? जिनके पास रुपया था, उन्हे अपनी चिन्ता थी। __उस्तु, कुलीन वश की मुकुमारी कुलवधू अधिक कष्ट न सह सकी, वह मर गयी । तव दवनन्दन इस शिशु को लकर घूमने लगे । वह भी मुमूप हा रहा था। उन्हाने बडे कप्ट स मुझे पहचानकर केवल इतना कहा--रामनाथ, मैने सब कुछ बच दिया, पर तुम्हारा धामपुर का खत नही बचा है, और यह तितली तुम्हारी शरण है । मैं तो चला। हा वह चल बस । मैने तितली का गाद म उठा लिया। आग वुड्ढा कुछ न कह सका, क्योकि तितली सचमुच चीत्कार करता हुई मूच्छित हो गयी थी और शैला उसक पास पहुंच कर उस प्रफुल्लित करने म लग गयी थी। इन्द्रदव आराम कुर्सी पर लट गये थे, और सुनने वाल धीरे-धीरे खिसक्ने लग।