पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२८९

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किसानों का नाल बाना ता वन्द कर दना पड़ा, पर रुपया देना ही पडता । अन की पती स उतना रुपया कहाँ निकलता, इसलिए आस पास के किसाना म वही हलचल मची थी। वार्टली क किसान-आसामिया म एक दवनन्दन भी थे । म उनका नाश्रित ब्राह्मण था । मुझ अन्न मिलता था और में काशी में जाकर पढता था। काशी की उन दिना की पडित-मडली में स्वामी दयानन्द के मा जान स हलचल मची हुई थी। दुर्गाकुड के उस शास्त्रार्थ मे मै भी अपने गुरुजी के साथ दशक-रूप स था, जिसप स्वामीजी क साथ वनारसी चाल चली गयी थी। ताली तो मैन भी पीट दी थी। मैं क्वीन्स कालेज के एग्लो-सस्कृत-विभाग भ पढता था मुये वह नाटक अच्छा न लगा । उस निर्भीक सन्यासी की ओर मेरा मन आकपित हो गया। वहाँ से लौटकर गुरुजी स मुझस कहा-सुनी हो गयी, और जब मैं स्वामीजी का पक्ष समर्थन करने लगा, ता गुरुजी न मुझे नास्तिक कहकर फटकारा । दवनन्दन का पत्र भी मुझे मिल चुका था कि कई कारणा सजन दना वह वन्द करत है । मैं अपन गठरी पीठ पर लादे हुए झुंझलाहट स भरा नीन-गुदाम के नीच से अपन गाव म लौटा जा रहा था। दखा कि दवनन्दन का नील काठी का पियादा काल खाँ पकड हुए ल जा रहा है। दवनन्दन सिंहपुर व प्रमुख किसान और जाप ही लोगों के जाति-बान्धव थे। उनकी यह दशा । रोम-रोम उनके अन्न स पला था । मैं भी उनके साथ पार्टनी के सामने जा पहुंचा। उस समय बुसिया पर बैठे हुए वार्टली और उनकी बहन जेन आपस म कुछ बाते कर रहे थे। जेन ने कहा-भाई । इधर जब स वह चले गये है मेरी चिन्ता बढ़ रही है। न जाने क्यो, मुझे उन पर सन्देह होने लगा है । मैं भी घर जाना चाहती हूँ। ___तुम जानती हा कि मैंने स्मिथ का कभी अपमान नहीं किया, और सच तो यह है कि मैं उसका प्यार करता हूँ। किन्तु क्या करूँ, उसका जैसा उग्र स्वभाव है, वह तो तुम जानती हो । म भला अभी काम छाड कर से चलूगा । --बार्टली न कहा। जब यह वाम ही वद हा गया, तव यहाँ रहन का क्या काम है । दखता हूँ कि जा रुपया तुम्हारा निकल भी जाता है, उस यहाँ जमीदारी म फंसात जा रह हा । क्या तुम यही बसना चाहते हा 2-जन न कहा । तव तुम क्या चाहती हा । बार्टली न अन्यमनस्क भाव स पूर्व की धारधीर मुघन वाली झील का दखत हुए कहा । नील का काम बन्द हो गया, पर अब हम लोगो को रुपये की कमी नहीं । तितती २६१