पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२७९

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इन्द्रदेव ने देखा कि उनके हृदय का बोझ टल गया-शैला ने मा के समीप पहुंचन का अपना पथ बना लिया । उन्होने इसे अपनी विजय समझी । वह मनहो मन प्रसन हो रह थे वि शैला ने उठते हुए नमस्कार करके कहा-माँ जी, मुझस भूल हा सकती है, अपराध नही । तब भी, आप लागा की स्नह-छाया म मुझे सुख की अधिक आशा है। श्यामदुलारी का स्नेह-सिक्त हृदय भर उठा । एक दूर देश की बालिका कितना मधुर हृदय लिये उनके द्वार पर खडी है । श्यामदुलारी स्नान करने चली गई। इन्द्रदेव के साथ शैला धीरे धीरे वडी काठी की ओर चली जा रही थी। माटर के लिए चौवेजी गये थे, तब तक दालान में अनवरी से माधुरी कहने लगी-तुमन ठीक कहा था मिस अनवरी | ___उसने माधुरी को अधिक खुलने का अवसर देत हुए कहा-मैने क्या ठीक कहा था? यही, शैला के सम्बन्ध म अनवरी गम्भीर बन गई। उसन कहा—बीवी रानी । तुम लोगो को इनसे कभी काम नही पड़ा है। ये सब जादूगर है । देखा न माजी को कैसा अपनी ओर दुलका लिया---माम बन गई। क्या या ही सात समुद्र तरह नदी पार करके यह आई है ! और पर तुमने भी मिस अनवरी । शैला को अच्छा एक उखाड दिया | थाहा-सा तो वह सोचेगी, वंगले से हटना उसे अखरेगा। क्यो ?-बीच ही म माधुरी न कहा। वह भी घुटी हुई है, कैसा पी गई । वीवी का कसक तो होगी ही । बीबी रानी, मैं तुमसे फिर कहती हूँ, तुम अपनी देखो । आपके भाई साहब तो नदी की बाढ़ म बह रहे हैं । मैं कल तो न आ सकूगी । हाँ, जल्दी आने की नहीं-नही अनवरी । कल, कल तुमको अवश्य आना होगा। इस समय तुम्हारी सहायता को बडी आवश्यकता है। उस चुडैल को, जिस तरह हो, नीचा माधुरी आगे कुछ न कह सकी, उसका क्रोध कपाला पर लाल हो रहा था। मानव-स्वभाव है, वह अपन सुख का विस्तृत करना चाहता है । और भी, क्वल अपन सुख स ही मुखी नही हाता, कभी-कभी दूसरा को दुखी करक, अपमानित करके, अपने मान को, मुख को प्रतिष्ठित करता है। माधुरी के मन में अनवरी के द्वारा जो आग जलाई गई है, वह कई रूप तितली २५१