पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२७६

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श्यामदुलारी यही पर सबस वात करती, मिलता-जुलती थी, क्योकि उनका निज का प्रकाष्ठ तो दव-मन्दिर के समान पवित्र, अस्पृश्य और दुर्गम्य था ? बिना स्नान किये—कपडा बदले, वहा कौन जा सकता था ! वाहर पैरा का शब्द सुनाई पडा । तीनो स्त्रियों सजग हो गई, माधुरी अपनी साडी का किनारा संवारने लगी। अनवरी एक उंगली से कान के पास के बाला को ऊपर उठान लगी । और, श्यामदुलारी थोडा खासने लगी। इन्द्रदेव शैला और चौबेजी के साथ भीतर आये । माता का प्रणाम किया। श्यामदुलारी न 'मुखी रहो कहते हुए देखा कि वह गोरी मम भी दोनो हाथा की पतली उँगलियो म बनारसी साडी का सुनहला अचल दवाये नमस्कार कर रही है। जनवरा उठकर खडी हा गई। माधुरी चौकी पर ही थाडा खिसक गई। माता न बैठन का सकेत किया । पर वह भीतर से शला से बोलन के लिए उत्सुक थी। इन्द्रदव न कहा-मिस अनवरी | माँ का दर्द भी अच्छा नहीं हुआ। इसक लिए आप क्या कर रही है । क्या माँ, अभी दर्द मे कमी ता नही है ? है क्यो नही बटा । तुमको देखकर दर्द दूर भाग जाता है । ---श्यामदुलारी न मधुरता से कहा। तब तो भाई साहब आप यहा माँ के पास रहिए। दर्द पास न आवेगा। ---माधुरी न कहा। लेकिन बीबीरानी । और लोग क्या करगे ? कुंवर साहब यही घर म बैठ रहग, तो जो लोग मिलन-जुलन वाले हैं व कहाँ जायेंगे । --अनवरी ने व्यग से कहा । यह बात श्यामदुलारी का अच्छो न लगी। उन्हान कहा-मै ता चाहती हूँ कि इन्द्र मेरी आँखा से जोझल न हो। वह करता ही क्या है मिस अनवरी । शिकार खेलने में ज्यादा मन लगाता है। क्यो, विलायत म इसकी वडी चाल है न । अच्छा बेटा । यह मेम साहब कौन हैं ? इनका तो तुमने परिचय ही नही दिया। ___माँ, इगलैण्ड म यही मरा सव प्रवन्ध करती थी । मरे खान-पीने का, पढ़नलिखन का, कभी जब अस्वस्थ हा जाता ता डाक्टरा का, और रात-रात भर जागकर नियमपूर्वक दवा दने का काम यही करती थी। इनका मैं चिर-ऋणी हूँ। इनकी इच्छा हुई कि मैं भारतवष देखूगी। इसी स चली आई है न । अच्छा वटा ! इनका काई कप्ट तो नही ? हम २४८ प्रसाद वाङ्मय