पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२७२

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तहसीलदार ने चश्मे के भीतर से जाख तरेरते हुए कहा-रामनाय हा न ? तग किया जा रहा है । हूँ। वैठो अभी। दस वीधे की जोत विना लगान दिये हडप किये बैठे हो और कहते हो, मुझे नग किया जा रहा है। क्या कहा ? दस बीघे । अरे तहसीलदार साहब, क्या अव जगल-परती मे भी बैठने न दोगे? और वह तो न जाने कव स कृष्णार्पण लगी हुइ बनजरिया है । वही तो बची है, और तो सब आप लोगो के पेट मे चला गया । क्या उसे भी छीनना चाहते हो? तहसीलदार चुपचाप उसे घूरने लगा। इन्द्रदेव शैला के साथ बाहर चने आये । अनवरी के लिए दर से माधुरी की भेजी हुई लौडी खडी थी । वह उसके साथ छोटी काठी में चली गई । इन्द्रदेव न बुड्ढे को देखकर तहसीलदार को सवेत किया । तहसीलदार अभी बुड्ढे रामनाथ की बात नही छेडना चाहता था। किन्तु इन्द्रदेव के सकेत से उसे कहना ही पडा-इसका नाम रामनाथ है। यह बनजरिया पर कुछ लगान नही देता । एकरेज जो लगा है, वह भी नही दना चाहता । कहता है-कृष्णार्पण माफी पर लगान कैसा? ___इन्द्रदेव ने रामनाथ को देखकर पूछा- क्यो, उस दिन हम लोग तुम्हारी ही झोपडी पर गये थे? हाँ सरकार । तो एकरेज तो तुमको देना ही चाहिए। मरकारा मालगुजारी तो तुम्हारे लिए हम अपने आप मे नही दे सकते । तहसीलदार से न रहा गया, वीच ही में वोल उठा-अभी तो यह भी नही मालूम कि यह वनजरिया का होता कौन है। पुराने कागजो म वह थी देवनन्दन क नाम । उसके मर जान पर बनजरिया पडी रही। फिर इसने आकर उमम आसन जमा लिया। बुड्ढा झनझना उठा । उसन कहा-हम कौन है, इसका बतान के लिए भाडा समय चाहिए सरकार । क्या आप सुनगे । शैला ने अपने सकेत से उत्सुक्ता प्रकट की । किन्तु इन्द्रदव ने कहा--चलो, अभी माताजी के पास चलना है । फिर किसी दिन सुनूंगा। रामनाथ आज तुम जाओ, फिर मैं बुलाऊंगा, तब आना। रामनाथ ने उठकर कहा-~-अच्छा सरकार । ____ चौबेजी बटुआ लिये हुए पान मुंह म दावे आकर खड हा गये । उनके मुख पर एक विचित्र कुतूहल था। वह मन-ही-मन सोच रहे थे-आज मैना बड़ी २४४ प्रसाद वाङ्मय