पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२६९

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वाली के लिए खडे थे। मिट्टी को संकरी पगडडी पर आगे गैला और पीछेपीछे अनवरी चल रही थी। दोनो चुपचाप पैर रखती हुई चली जा रही थी। पगडडी से थोड़ी दूर पर एक झापडी थी, जिस पर लौकी और कुंभडे की लतर चही थी। उसम से कुछ वात करने का शब्द सुनाई पड रहा था । शैला उसी आर मुडी । वह झोपडी के पास जाकर खड़ी हो गई। उसने देखा, मधुवा अपनी टूटी खाट पर बैठा हुआ बञ्जा से कुछ कह रहा है । वो न उत्तर में कहा-तब क्या करोग मधुबन । अभी एक पानी चाहिए। तुम्हारा आलू साराकर ऐसा ही रह जायगा ? दाई रुपये के गिना । महंगू महता उधार हल नहीं दगे ? मटर भी सूख जायेगी। ___ अरे आज मैं मधुबन कहाँ मे वन गया रे बञ्जो। पोट दूंगा जा मुझे मधुवा न कहेगी। मैं तुझे तितली कहकर न पुकारूंगा । मुना न? हल उधार नही मिलेगा, महतो ने साफ-साफ कह दिया है। दस विस्से मटर और दस विस्से आलू के लिए खेत मैंने अपनी जोत मे रखकर वाकी दो बीघे जौ-गेहूँ वाने के लिए उसे साझे मे दे दिया है । यह भी सेत नही मिला, इसी की उमे चिढ है । कहता है कि अभी मेरा हल खाली नही है । तव तुमने इस एक बीघे को भी क्या नही दे दिया । मैंने सोचा कि शहर तो मैं जाया ही करता है। नया आलू और मटर वहां अच्छे दामो पर वेचकर कुछ पैसे भी लूंगा, और वञ्जो । जाडे मे इस झापडी म बैठे-बैठे रात को उन्हे भून कर खाने मे कम मुख ता नहीं है । अभी एक कम्बल 'नेना जरूरी है। तो बापू से कहते क्या नहीं ? वह तुम्ह ढाई रुपया दे देंगे। उनसे कुछ मांगूंगा, तो यही समझेंगे कि मधुवा मेरा कुछ काम कर देता है, उसी की मजूरी चाहता है। मुझे जो पढ़ाते हैं, उसकी गुरु-दक्षिणा मैं उन्हे क्या देता है ? तितली । जो भगवान करेंगे, वही अच्छा होगा। ____अच्छा तो मधुवन । जाती हूँ। अभी बापू छावनी से लौटकर नहीं आय । जी घबराता है । यह कहकर जब वह लौटने लगी, तो मधुवन ने कहा- अच्छा, फिर आज स में रहा मधुबन और तुम तितली । यही न? दोनो भी जाग एक क्षण के लिए मिली-स्नेहपूर्ण आदान-प्रदान करने क लिए । मधुवन उठ खडा हुआ, तितली वाहर चली आई । उसने देखा, शैला और जनवरी चुपचाप यही हैं । वह सकुच गई । शैला ने सहज मुस्कुराहट से कहातब तुम्हारा नाम तितली है क्या? तितली २४१