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इन उपन्यासो को एक विशेषता को ओर सकेत करना और आवश्यक है और वह है भाषा के प्रयोग के प्रति दृष्टि का । जयशकर प्रसाद पात्रो के वर्ग और यथार्थ के तर्क से प्रयुक्त को जाने वाली भाषा से परिचित थे कालिदास और भारतेन्दु इसके प्रयोता और प्रमाण पे । उपन्यास मे वे बोलियों के प्रयोग करने के पक्ष म नही थे बल्कि भाषा में ही कलात्मक कौशल से विभिन्न संवेदनाओ, स्पितियो और मनोवृत्तियो की आम व्यजनात्मक क्षमता के पक्ष म थे। महत्वपूर्ण बात यह है कि स्वतत्रता संघर्ष के दौरान लिखे गये महत्वपूर्ण रचनाओ मे आचलिकता का यह औपनिवेशिक दृष्टिकोण नही मिलता है, जो यथाय के नाम पर भापिक सृजनशीलता से पलायन का दरवाजा खोलता है । भाषा को यह 'छविमयता' प्रसाद म है। विशेषकर कवाल म । प्रकृति चित्रण और वातावरण तथा स्थिति के बोध में प्रसाद निश्चय ही अपने समकालीनो से अधिक दक्ष हैं । 'ककाल' और 'तितली' दोनो का प्रारभ इस प्रकार की अरेस्टिंग क्षमता से युक्त है । प्रसाद की यह विशेषता सारे उपन्यासो म है । प्रेमचद में इस क्षमता का अभाव है। जबकि कथात्मक तत्वो का प्रयोग उन्होंने भी किया है । अन्तर केवल श्रव्य और दृश्य विधान का है। प्रेमचद पाठ्यगुण और श्रव्य विधान का प्रयाग अधिक करत हैं। दृश्य नियोजन मे वह सटीकता नही है, जो प्रसाद मे है। और यह क्षमता उस बौद्धिक क्षमता की अन्तर्राप्त स्थिति के कारण है, जो उपन्यास मे निर्मित हो नहीं है बल्कि उसकी कल्पना का अग है । यही क्षमता है जो प्रसाद को तितलो के माध्यम से उस क्षणवादी विचार विन्दु तक ले जाती है जो 'शेखर एक जीवनी' और 'नदी के द्वीप' का प्रमुख विषय है । इन्द्रदेव का यह कथन कि "जितने समय तक वह ऐसी दृढ़ता दिखा सके, अपने अस्तित्व का प्रदर्शन कर सके, उतने क्षण तक क्या जिया नही ' आधुनिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। ऐसा निष्कर्ष केवल तितली का ही नही बल्कि ककाल में जमुना का भी है। प्रसाद जी वस्तुत गांव और शहर का इकाई मानकर नही बल्कि होनेवाले परिवर्तनो के आधार पर आदर्श गांव और शहर को चरित्र विकसित करते हैं। 'तितली का गांब' टूटते हुए जमीदारो, बेदखल होते किसाना, गांव से शहर भागते ग्रामीणो और नष्टप्राय ग्रामीण पारिवारिकताओ, कारिन्दो और पिठुओ से सताये जाते हुए निरपराध किसानो, ऐयाशी करते हुए सामन्तो तथा इन सबसे लड़ते हुए मधुवन, तितली, रामजस और रामदीन का गांव है। प्रसाद जी ब्योरेवार वर्णन के बजाय लाक्षणिक और सकेतात्मक वर्णन करते हैं। गांव की प्रवृत्ति और उसका समाज प्रसाद के लिए एक इकाई है और इस इकाई प्राक्कथन २६