पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२४९

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वञ्जो दीप जलाने लगी । उस दरिद्र कुटीर के निर्मम अन्धकार मे दीपक की ज्योति तारा-सी चमकने लगी। बुड्ढे ने पुकारा वञ्जो। आयी–कहती हुई वह वुड्ढे की खाट के पास आ बैठी और उसका सिर महलाने लगी। कुछ ठहरकर बोली-वापू ! उस अकाल का हाल न सुनाओगे ? तू सुनेगी बञ्जो ! क्या करेगी सुनकर वेटी? तू मेरी बेटी है और मैं तेरा बूढा बाप ! तेरे लिए इतना जान लेना बहुत है। नही वापू । मुना दो मुझे वह अकाल की कहानी-वञ्जो ने मचलते हुए । कहा। धाय-धाय-धाय...।।। गगा-तट बन्दुक के धडाके से मुखरित हो गया। बञ्जो कुतूहल से झोपडी के वाहर चली आयी। ___ वहाँ एक घिरा हुआ मैदान था। कई बीघा को समतल भूमि-जिसके चारा ओर, दस लठे की चौडी, झाडियां की दीवार थी-जिसमे कितने ही सिरिस, महुआ, नीम और जामुन के वृक्ष थे-जिन पर घुमची, सतावर और करा इत्यादि की लतरे झूल रही थी। नीचे की भूमि मे भटेस के चौडे-चौडे पत्तो की हरियाली थी। बीच-बीच मे वनवेर ने भी अपनी कंटीली डालो का इन्ही सबो से उलझा लिया था। वह एक सघन झुरमुट था-जिसे बाहर से देखकर यह अनुमान करना कठिन था कि इसके भीतर इतना लम्बा-चौडा मैदान हो सकता है। देहात के मुक्त आकाश मे अन्धकार धीरे-धीरे फैल रहा था। अभी मूर्य की अस्तकालीन लालिमा आकाश के उच्च प्रदेश में स्थित पतले बादलो में गुलाबी आभा दे रही थी। ___ बञ्जो, बन्दूक का शब्द सुनकर, वाहर तो आयो; परन्तु वह एकटक उसी गुलाबी आकाश को देखने लगी । काली रेखाओ-सी भयभीत कराकुल पक्षियो की पक्तियाँ 'करररर-कर' करती हुई सध्या की उस शान्त चित्रपटी के अनुराग पर कालिमा फेरने लगी थी। हाय राम | इन काँटो मे–कहाँ आ फंसा । बजो कान लगाकर सुनने लगी। फिर किसी ने कहा-नीचे करार की ओर उतरने मे तो गिर जाने का डर है, इधर ये काटेदार झाडियो | अब किधर जाऊँ ? तितली : २२१