पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२३१

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अत्यन्त प्राचीनकाल में भी इस वर्ण विद्वेप का ब्रह्म-क्षत्र-सघप कासाक्षी रामायण है उस वर्ण भेद क भयानक सघर्ष का यह इतिहास जानकर भी नित्य उसका पाठ करके भी भला हमारा देश कुछ समझता है ? नही यह देश समझेगा भी नही । सज्जनो । वण भद, सामाजिक जीवन का क्रियात्मक विभाग है। यह जनता क कल्याण क लिए बना परन्तु द्वेष की सृष्टि म, दम्भ का मिथ्या गर्व उत्पन्न करन म, वह अधिक सहायक हुआ है । जिस कल्याण-बुद्धि से इसका आरम्भ हुआ, वह न रहा, गुण-कर्मानुसार वर्णों की स्थिति नष्ट हाकर आभिजात्य के अभिमान म परिणत हा गई, उसका व्यक्तिगत परीक्षात्मक निर्वाचन क लिए, वर्णां क शुद्ध वर्गीकरण के लिए वर्तमान अतिवाद को मिटाना हागा -चल, विद्या और विभव का एमा सम्पत्ति किस हाड मास के पुतल के भीतर ज्वालामुखी-सी धधक उठेगी काई नहीं जानता । इसलिए व व्यर्थ के विवाद हटाकर उस दिव्य सस्कृति--आय-मानव सस्कृति-को सवा म नगना चाहिए । भगवान् का स्मरण करक नारी जाति पर अत्याचार करन से विरत हो । किसी का शवरी के सदृश मत न समझा, किसी का अहल्या के सदृश पापिनी मत कहा । किसी का लघु न ममझा । सर्वभूत हित रत हाकर भगवान् क लिए सर्वस्व समपण करो, निभय रहा। भगवान् की विभूतिया का समाज न वांट लिया है, परन्तु जब मै स्वार्थिया का भगवान् पर भी अपना अधिकार जमाय देखता हूँ तब मुझे हसी जाती है और भी हंसी आती है ---जब उस अधिकार की पापणा करक दूसरा का व छोटा, नीच आर पतित ठहरात है । बहु परिचारिणी जाबाना के पुन सत्यकाम का कुलपति न ब्राह्मण स्वीकार किया था, किन्तु उत्पति पतन आर दुबलताआ क व्यग स मैं घबराता नही । जा दापपूर्ण आखा म पतित है जो निसर्ग-दुर्वन है, उन्ह अवलम्ब देना भारतसघ का उद्देश्य है । इसलिए, इन स्त्रिया का भारत-सघ में पुन लौटात हुए वडा सन्ताप हाता है। इन लतिका देवी ने अपना सर्वस्व दान किया है । उस धन से स्त्रिया की पाठशाला खोली जायगी, जिसम उनकी पूर्णता की शिक्षा क साथ व इस याम्य बनाया जायंगो कि घरा में पदो में दीवारा के भीतर नारी-जाति क मुख, स्वास्थ्य और सयत स्वतन्त्रता की घोपणा कर, उह सहायता पहुंचाएं, जीवन के अनुभवा से अवगत करे । उनम उन्नति, सहानुभूति, क्रियात्मक प्रेरणा का प्रकाश फैलाएं। हमारा दश इस सन्दश स-नवयुग क सन्देश स–स्वास्थ्यलाभ कर । इन आयललनाआ का उत्साह मफल हा, यही भगवान से प्रार्थना है । अब आप मगलदव का व्याख्यान सुनगे, वे नारी-जाति क ककाल २०३