पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२२१

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सरला के हृदय में स्नेह का सचार देखकर मगल का हृदय भी स्निग्ध हा चना । उसको बहुत दिना पर इतने सहानुभूति-मूचक शब्द पुरस्कार में मिले थे। ___ मगल इवर लगातार कई दिन धूप मे परिश्रम करता रहा । आज उसका आँखे लाल हो रही थी। दालान म पडी हुई चौकी पर जाकर लेट रहा । ज्वर का आतब उसके ऊपर छा गया था । वह अपने मन में सोच रहा था कि बहुत दिन हुए बीमार पडे-काम कर के रोगी हा जाना भा एक विश्राम है, चलो कुछ दिन छुट्टी ही सही । फिर वह सोचता कि मुझे बीमार हाने की आवश्यकता नही, एक चूंट पानी तक का काई न पूछेगा । न भाई, यह सुख दूर रहे | पर, उसके अस्वीकार करने से क्या दुख न आते ? उसे ज्वर आ ही गया वह एक कोने म पडा। निरजन उत्सव की तेयारी में व्यस्त था। मगल क रागी हा जान स सव का छक्का छूट गया। वृष्णशरणजी ने कहा-तब तक सघ के लोगो के उपदश के लिए मैं राम-कथा कहूंगा और सर्वमाधारण के लिए प्रदर्शन तो जव मगल स्वस्थ होगा, किया जायगा। __बहुत-स लोग बाहर से भी आ गय य । सघ म वडी चहल-पहल थी, पर मगल ज्वर मे अचेत रहता। केवल सरला उसे देखती थी। आज तीसरा दिन था, ज्वर मे तीव्र दाह था, अधिक वदना से सिर म पीडा थी, लतिका ने कुछ ममय क लिए छट्टी देकर सरला का स्नान करन क लिए भेज दिया था। सवेरे को धूप जंगने के भीतर जा रही थी। उसके प्रकाश म मगल की रक्तवर्ण आख मोपण लाली से चमक उठती। मगन ने कहा- गाला। लडकियो की पढाई ___ लतिका पास बैठी थी। उसने समझ लिया कि ज्वर की भीषणता म मगन प्रलाप कर रहा है। वह घबरा उठी। मरला इतन म स्नान कर के आ चुकी थी । लतिका न प्रलाप की भूचना दी। सरला उस वही रहने के लिए कहकर गोस्वामी क पास गई। उसने कहा---महाराज | मगल का ज्वर भयानक हा गया है । वह गाला का नाम लेकर चौक उठता है। गोस्वामीजी कुछ चिन्तित हुए 1-~-कुछ विचार कर उन्होंने कहा-सरला, घबरान की काई बात नही, मगल शीघ्र अच्छा हो जायगा। मैं गाला को बुलवाता हूँ। ____ गोस्वामीजी की आज्ञा स एक छात्र उनका पत्र लकर सीकरी गया। दूसरे दिन गाना उसके साथ आ गई। यमुना ने उसे देखा । वह भगल से दूर रहती। फिर भी न जाने क्या उसका हृदय कचोट उठता, पर वह लाचार थी। ककाल १६३