पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२१५

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—दल कम होने के कारण लौट आई; उन्हे घेर न सकी । डाकू लोग निकल भागे --इत्यादि-इत्यादि। गोली का शब्द मुनकर पास ही माया हुआ भालू भूक उठा, मैं भी चौक पड़ा । देखा कि निस्तब्ध अवेरी रजनी म यह कैसा शब्द | मै कल्पना से बदन का सकट मे समझने लगा। ___ जव से विवाह-सम्बन्ध को मैने अस्वीकार किया, तब से बदन के यहाँ नही जाता था। इधर-उधर उसी खारी के तट पर पड़ा रहता । कभी सन्ध्या के समय पुल के पास जाकर कुछ मॉग लाता, उसे खाकर भालू और मैं दाना ही सन्तुष्ट हो जाते । क्योकि खारी में जल की कमी तो थी नही। जाज सडक पर सन्ध्या को कुछ असाधारण चहल-पहल देखो, इसलिए बदन के कष्ट की कल्पना कर सका। सिवारपुर के गाव के लाग मुझे औघड समझते--क्योकि मै कुत्ते के साथ ही खाता हूँ। कम्बल बगल मे दवाये, भालू के साथ मै, जनता को आँखा का एक आकर्पक विषय हो गया है। ___ हाँ, तो वदन के सकट की कल्पना ने मुझको उत्तेजित कर दिया । मैं उसके झोपड़े की ओर चला । वहाँ जाकर जब वदन को घायल कराहते देखा, तब तो मै जमकर उसकी सेवा करन लगा। तीन दिन बीत गये, बदन का ज्वर भीषण हो चला । उसका घाव भी असाधारण था, गोली तो निकल गई थी, पर चोट गहरी थी । बदन न एक दिन भी तुम्हारा नाम न लिया । सन्ध्या को जव मैं उस जल पिला रहा था, मैने वायु-विकार वदन की आखो में स्पष्ट देखा । उससे धीरे से पूछा--गाला को बुलाऊँ ? वदन ने मुंह फेर लिया । मै अपना कर्तव्य सोचने लगा, फिर निश्चय किया कि आज तुम्हे बुलाना ही चाहिए। गाला पथ चलते-चलते यह कथा सक्षेप मे मुन रही थी, पर कुछ न बोली । उस इस समय केवल चलना ही सूझता था। नये जब गाला को लेकर पहुंचा, तव बदन को अवस्था अत्यन्त भयानक हो चली थी। गाला उसके पैर पक्डकर रोने लगी। वदन ने कष्ट से दोनो हाथ उठाय, गाला न अपन शरीर को अत्यन्त हल्का करके बदन के हाथ मे दिया । मरणोन्मुख वृद्ध पिता ने अपनी कन्या का सिर चूम लिया। नये उस समय हट गया था। वदन ने धीरे से उसके कान में कुछ कहा, गाला ने भी समझ लिया अब अन्तिम समय है। वह डटकर पिता के खाट के पास बैठ गई। हाय, उस दिन की भूखी सध्या ने उसके पिता को छीन लिया । कंकाल: १८७