पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२०७

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दो-चार मनुष्य और इकट्ठे हो गये। बाथम ने कहा-मां जी, यह मेरी विवाहिता स्त्री है यह ईसाई है, आप नही जानती। नन्दो तो घबरा गई। और लोगा ने भी कान सगवगाय, पर सहसा फिर मगल बाथम के सामन लट गया। उसन घण्टी से पूछा-क्या तुम ईसाई-धम ग्रहण कर चुकी हो? मैं धर्म-कर्म कुछ नहीं जानती। मरा काई आश्रय न था, तो इन्हाने मुये कई दिन खान को दिया था। ठीक है, पर तुमने इनक साथ ब्याह किया था। नही, यह मुझे दो-एक दिन गिरजाघर म ल गये थे ब्याह-वाह मै नही जानती। मिस्टर बाथम, यह क्या कहती है ? क्या आप नागा का ब्याह चर्च म नियमानुसार हो चुका है आप प्रमाण दे सकते है। नही, जिस दिन होने वाला था उसी दिन तो यह भागी। हा, यह वपतिस्मा अवश्य ले चुकी है। क्यो, तुम ईसाई हो चुकी हा ? मैं नहीं जानती। अच्छा मिस्टर वाथ म | अब आप एक भद्र पुरुप हान के कारण इस तरह एक स्त्री को अपमानित न कर सकग । इसके लिए आप पश्चाताप ता करग हो, चाहे वह प्रकट न हो । छोडिए, राह छोडिए जाआ देवी । मगल के इस कहने पर भोड हट गई । वाथम भी चला। अभी वह अपनी धुन म थोडी दूर गया था कि चर्च का वुढ्ढा चपरासी मिला । वाथम चौंक पडा। चपरासी ने कहा-बड माहब की चलाचली है, चर्च को संभालन के लिए आपका बुलाया है। बाथम किंकर्तव्य-विमूढ-सा चर्च के तांगे पर जा बैठा। पर नन्दा का तो पैर ही आग न पडता था। वह एक वार घटो को देखती, फिर सडक को। घण्टी क पैर उसी पृथ्वी में गडे जा रहे थे। दुख से दोना के आंसू छलक आये थे। दूर खडा मगल भी यह सब देख रहा था, वह फिर पास आया, बाला-आप लोग अब यहाँ क्या खडी हैं ? नन्दो रा पडी, बोली-चावूजी, बहुत दिन पर मेरी बटी मिली भी, तो बधरम होकर ! हाय, अब में क्या करूं? भगल के मस्तिष्क म सारा बात दौड़ गई, वह तुरत बोल उठा-आप लोग गोस्वामी जी के आथम म चलिए, वहाँ सब प्रवन्ध हो जायगा, सडक पर खड़ी रुकाल १७६