पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२०२

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यही तो मै समझ न सका। तुम न समझ सके । स्त्री एक पुरुष को फांसी से बचाना चाहती है और इसका कारण तुम्हारी समझ मे न आया-इतना स्पष्ट कारण । तुम क्या समझती हो? स्त्री जिससे प्रेम करती है, उसी पर सरवम वार देने को प्रस्तुत हो जाती है, यदि वह भी उसका प्रेमी हो तो | स्त्री वय वे हिसाब से सदैव शिशु, कर्म में वयस्क और अपनी असहायता मे निरीह है । विधाता का ऐसा ही विधान है। मगल ने देखा कि अपने कथन मे गाला एक मत्य का अनुभव कर रही है । उसन कहा—तुम स्त्री-मनोवृत्ति का अच्छी तरह समझ सकती हो, परन्तु सम्भव है यहाँ भूल कर रही हा । सव स्त्रियों एक ही धातु की नही । देखो मैं जहां तक उसके सम्बन्ध म जानता हूँ, तुम्हे मुनाता हूँ-वह एक निश्छल प्रेम पर विश्वास रखती थी और प्राकृतिक नियम से आवश्यक था कि एक युवती किमी भी युवक पर विश्वास करे, परन्तु वह अभागा युवक उम विश्वास का पार नही था। उमकी अत्यन्त आवश्यक और कठोर घडियो में युवक विचलित हा उठा । कहना न होगा कि उस युवक ने उसके विश्वास को पूरी तरह ठुकराया । एकाकिनी उस आपत्ति की कटुता झेलने के लिए छोड दी गई । बेचारी का एक सहारा भी मिला परन्तु यह दूसरा युवक भी उसके साथ वही करन के लिए प्रस्तुत था, जा पहल युवक ने किया । वह फिर अपना आश्रय छोडन के लिए वाध्य हुई । उसने सघ की छाया म दिन बिताना निश्चित किया । एक दिन उसन देखा कि यही दूसरा युवक एक हत्या करके फाँसी पान की आशा मे हठ कर रहा है । उसने उस हटा दिया आप शव के पास बैठी रही। पकडी गई, तो हत्या का भार अपने सिर ल निया । यद्यपि उसने स्पष्ट स्वीकार नहीं किया, परन्तु शासन को तो एक हत्या के बदले दूसरी हत्या करनी ही है। न्याय को यही समीप मिली, उसी पर अभियोग चल रहा है । में ता समझता हूँ कि वह हताश होकर जीवन दे रही है । उसका कारण प्रेम नही है, जैसा तुम समझ रही हो । ___गाला ने एक दीर्घ नि श्वास लिया। उसन कहा-नारी जाति का निर्माण विधाता की एक झुंझलाहट है । मगल | उमस समार भर के पुरुप कुछ लेना चाहते हैं, एक माता ही कुछ सहानुभूति रखती है, इसका कारण है उमका भी स्त्री हाना । हाँ, ता उसन न्यायालय मे अपना क्या वक्तव्य दिया? उसने कहा-पुरुष स्त्रियो पर सदैव अत्याचार करते है, कही नही सुना गया कि अमुक स्त्री ने अमुक पुरुष के प्रति ऐसा ही अन्याय किया, परन्तु पुरुषा का यह माधारण व्यवमाय है--स्त्रिया पर आक्रमण करना । जो अत्याचारी है, १७९ प्रसाद वाङमय